मैं ये सोच कर उसके दर से-हकीक़त १९६४
ही गंभीर है. हालांकि फिल्म में एक खुशनुमा गीत
भी है रफ़ी का गाया हुआ और साथ में एक दीवाली
गीत है वो भी दुःख के भाव वाला है.
सुनते हैं फिल्म से रफ़ी का गाया एक दर्द भरा गीत
जो क्लासिक गीतों में शुमार है.
गीत के बोल:
मैं ये सोच कर उसके दर से उठा था
के वो रोक लेगी मना लेगी मुझको
हवाओं में लहराता आता था दामन
के दामन पकड़ कर बिठा लेगी मुझको
कदम ऐसे अंदाज़ से उठ रहे थे
के आवाज़ देकर बुला लेगी मुझको
मगर उसने रोका न उसने मनाया
न दामन ही पकड़ा न मुझको बिठाया
न आवाज़ ही दी न वापस बुलाया
मैं आहिस्ता आहिस्ता बढ़ता ही आया
यहाँ तक के उससे जुदा हो गया मैं
यहाँ तक के उससे जुदा हो गया मैं
जुदा हो गया मैं जुदा हो गया मैं
जुदा हो गया मैं जुदा हो गया मैं
............................................................
Main ye soch kar uske dar se-Haqeeqat 1964
Artist:
0 comments:
Post a Comment