Dec 22, 2019

तकदीर के कलम से-बेरहम १९८०

फिलोसॉफी पर कुछ ज्यादा बातें हो रही हैं कुछ दिन
से. सिलसिले को आगे बढाते हुए एक गाना सुनते हैं
फिल्म बेरहम से. वर्मा मलिक की रचना है और इस
गीत का संगीत तैयार किया है लक्ष्मीकांत प्यारेलाल
ने.

मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ वाला ये गीत लोकप्रिय तो
नहीं मगर प्रेरणादायी है और मधुर है, इसे एक बार
अवश्य सुनना चाहिए. टी वी के न्यूज़ चैनलों पर ढेर
सारी खिड़कियों से आती आवाजें जो थोड़ी देर के बाद
भौं-भौं में तब्दील हो जाती हैं उनसे जो सर दर्द होता
है उसे दूर करने में प्रेरणादायी गीत बहुत सहायक होते
हैं.




गीत के बोल:

तक़दीर के कलम से कोई बच न पायेगा
तक़दीर के कलम से कोई बच न पायेगा
पेशानी पे जो लिखा है वो पेश आयेगा
मालिक ने जो लिख दिया है वो मिट न पायेगा
पेशानी पे जो लिखा है वो पेश आयेगा
वो पेश आयेगा

चाहने से कभी आरज़ू के फूल न खिले
ख़ुशी के चार दिन भी ज़िंदगी में न मिले
देखिये ये प्यार कितना मजबूर है
मज़िल से पास आ के भी मज़िल से दूर है
एक नज़र भर के भी ना तू देख पायेगा
पेशानी पे जो लिखा है वो पेश आयेगा
वो पेश आयेगा

किस्मत बिना कोई किसी को पा नहीं सके
और प्यार को सीने से भी लगा नहीं सके
मिलाने से पहले ही यहाँ दिल टूट जाते हैं
सफ़र से पहले हमसफ़र भी छूट जाते है
तक़दीर तुझपे हँसेगी तू रो न पायेगा
पेशानी पे जो लिखा है वो पेश आयेगा
वो पेश आयेगा

तक़दीर के कलम से कोई बच न पायेगा
पेशानी पे जो लिखा है वो पेश आयेगा
वो पेश आयेगा
वो पेश आयेगा
……………………………………………….
Taqdeer ke kalam se-Beraham 1980

Artist:

2 comments:

bogus reporter,  March 18, 2020 at 9:00 PM  

that's right

Geetsangeet March 23, 2020 at 10:11 PM  

इंतज़ार करिये, थोड़े दिन में किसी चैनल का नाम
होगा-भौं भौं चैनल.

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