कितने क़िस्म की बेईमानी-बेईमान १९७२
पेश है. इसमें नायक एक एक कर के बेईमानी की
किस्में गिनवा रहा है. जो कुछ पहले संस्करण में
बाकी बच गया था वो इस संस्करण की पंक्तियों में
शामिल कर लिया है गीतकार ने.
वर्मा मलिक ने इस प्रकार के गीत काफी लिखे हैं
मगर प्रसिद्धि दूसरे गीतकारों को ज्यादा मिली है
जिन्होंने भ्रष्टाचार, सामाजिक समस्याओं और इतर
विषयों पर लिखा है.
मुकेश की आवाज़ है और संगीत शंकर जयकिशन का.
गीत के बोल:
कितने किस्म की बेईमानी कितने किस्म के बेईमान
एक एक गिनवाता हूँ ज़रा सुनना दे कर ध्यान
राईट देट्स राईट
न इज्ज़त की चिंता न फिकर कोई अपमान की
जय बोलो बेईमान की जय बोलो
जय बोलो बेईमान की जय बोलो
न इज्ज़त की चिंता न फिकर कोई अपमान की
जय बोलो बेईमान की जय बोलो
जय बोलो बेईमान की जय बोलो
बात के झूठे नज़र के खोटे दिल के बड़े कठोर
बड़ा हैरान हुआ जब देखे बैठे चारों ओर
मुझे देख इस महफ़िल में इसलिए मचायें शोर
के बड़े बड़े चोरों में आ गया कहाँ से छोटा चोर
जो कहना है वो कह दूं परवाह नहीं इस अपमान की
जय बोलो बेईमान की जय बोलो
जय बोलो बेईमान की जय बोलो
इस दुनिया में देखे हैं कुछ ऐसे भी इंसान
खुद को देवता समझें और दूजे को बेईमान
आज फोड़ दूं सबके भांडे टूट जाए अभिमान
अपने अपने दिल से पूछो कौन है ईमान
सूरज सी दिशा दी है पर सूरत है शैतान की
जय बोलो बेईमान की जय बोलो
जय बोलो बेईमान की जय बोलो
बड़ी बेईमानी करते कुछ बड़े घरों के जाये
बड़े नाम की चादर से चेहरे को रहे छुपाये
औरों पे वो दोष लगा कर अपने पाप छुपाये
उसको मान मिले जग में जो बेईमान बन जाये
उस बाप को खबर नहीं है अरे ऐसी नेक संतान की
जय बोलो बेईमान की जय बोलो
जय बोलो बेईमान की जय बोलो
अरे न इज्ज़त की चिंता न फिकर कोई अपमान की
जय बोलो बेईमान की जय बोलो
जय बोलो बेईमान की जय बोलो
……………………………………………
Kitne kism ki beimaani-Beimaan 1972
Artist: Manoj Kumar, Rakhi
0 comments:
Post a Comment