आ कहीं दूर चले जायें हम-लावारिस १९९९
में भी आपको लुभाते हैं. एक पर्यावरण प्रेमी गाना सुन
लेते हैं आज. हो सकता है बर्फीली पहाड़ियां देख के
हमारी तबियत बहल जाये और गर्मी का आभास कम
हो.
परदे पर एलेमेंट्स का कितना ध्यान रखा जाता है इस
बात का उदाहरण इस गीत से ही लें. सरसों के खेत में
नायक नायिका कूद रहे है. इसकी गर्मी से दर्शक पिघल
ना जायें तो अगली पंक्ति में बर्फ दिखलाई देने लगती है.
बर्फ से जनता ठिठुर ना जाए इसलिए नायक नायिका ने
लाल रंग के कोट पहन रखे हैं. अब आप ये मत पूछियेगा
कि पतलूनें काली क्यूँ हैं.
गाने में समय कितनी जल्दी गुज़रता है. बर्फ के मैदान
से सीधे खेत खलिहान और ट्रेक्टर की सवारी के बाद किसी
जगह कैंप फायर का आनंद लेते हुए दोनों सफ़ेद फूलों से
लबालब अर्ध-जंगल में दोनों अन्तरा गाने पहुँच जाते हैं.
एक बात गौर करने लायक है गीत की पंक्ति के साथ साथ
दृश्यावली भी बदल रही है. मुखडा वापस आते ही गाना
फिर बर्फ की और.
दूसरे अंतरे में शाम का धुंधलका और झील में चाँद के
अक्स के दर्शन के बाद गाना फिल्म मौसम और १९७०
की रातों का राजा की याद दिलाते हुये समापन की ओर
अग्रसर हो जाता है.
गीत जावेद अख्तर का है और इसमें यमक अलंकार
नदारद है. संगीत राजेश रोशन का है. उदित-अलका
गायक कलाकार हैं.
गीत के बोल:
आ कहीं दूर चले जायें हम
आ कहीं दूर चले जायें हम
दूर इतना कि हमें छू न सके कोई ग़म
आ कहीं दूर चले जायें हम
आ कहीं दूर चले जायें हम
दूर इतना कि हमें छू न सके कोई ग़म
फूलों और कलियों से महके हुए इक जंगल में
इक हसीं झील के साहिल पे हमारा घर हो
ओस में भीगी हुई घास पे हम चलते हों
रंग और नूर में डूबा हुआ हर मंज़र हो
मैं तुझे प्यार करूं मेरे सनम
तू मुझे प्यार करे मेरे सनम
आ कहीं दूर चले जायें हम
दूर इतना कि हमें छू न सके कोई ग़म
आ कहीं दूर चले जायें हम
आ आ आ आ आ आ आ आ आ
आ आ आ आ आ आ
शाम का रंग हो गहरा तो सितारे जागें
रात जो आये तो रेशम से अंधेरे लायें
चाँद जब झील के पानी में नहाने उतरे
मेरी बाहों में तुझे देख के शरमा जाये
मैं तुझे प्यार करूं मेरे सनम
तू मुझे प्यार करे मेरे सनम
आ कहीं दूर चले जायें हम
दूर इतना कि हमें छू न सके कोई ग़म
आ कहीं दूर चले जायें हम
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Aa kahin door chale jayen ham-Lawaris 1999
Artists: Akshay Khanna, Manisha Koirala
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