ए शहर-ए-लखनऊ-पालकी १९६७
कई बदलाव देखे. नवाबी दौर में इसे खूब लोकप्रियता मिली.
आज ये उत्तर प्रदेश राज्य की राजधानी है. रेल और सड़क
मार्ग से ये तकरीबन उत्तर प्रदेश के सभी प्रमुख नगरों से जुड़ा
हुआ है.
१९६७ की फिल्म पालकी की कहानी इसी शहर को समर्पित है
शायद. फिल्म के टाइटल्स में लखनऊ को याद करता हुआ ये
गीत है जिसे शकील बदायूनीं ने लिखा है और जिसका संगीत
नौशाद ने तैयार किया है. इसे रफ़ी ने गाया है और परदे पर
इस पर राजेंद्र कुमार ने होंठ हिलाये हैं.
गीतकार शकील बदायूनीं के नाम में जिस बदायूं का जिक्र है
वो लखनऊ के पास ही का एक क़स्बा है. गीतकार इसमें शहर
के कुछ मोन्युमेंट्स के नाम और जोड़ देते तो ये टूरिज़्म वालों
का सिग्नेचर गाना बन जाता.
गीत के बोल:
ए शहर-ए-लखनऊ तुझे मेरा सलाम है
ए शहर-ए-लखनऊ तुझे मेरा सलाम है
तेरा ही नाम दूसरा जन्नत का नाम है
ए शहर-ए-लखनऊ
मेंरे लिए बहार भी तू गुलबदन भी तू
परवाना और शमा भी तू अंजुमन भी तू
जुल्फों की तरह महकी हुई तेरी शाम है
ए शहर-ए-लखनऊ
कैसा निखार तुझमे है क्या क्या है बांकपन
ग़ज़लें गली गली हैं तो नगमे चमन चमन
शायर के दिल से पूछ तेरा क्या मक़ाम है
ए शहर-ए-लखनऊ तुझे मेरा सलाम है
तेरा ही नाम दूसरा जन्नत का नाम है
ए शहर-ए-लखनऊ
तू वो है लोग शहरे निगारा कहें जिसे
फ़िरदौस-ए-हुस्न-ए-रश्क-ए-बहारा कहें जिसे
तेरे हर एक अदा में वफ़ा का पयाम है
ए शहर-ए-लखनऊ तुझे मेरा सलाम है
तेरा ही नाम दूसरा जन्नत का नाम है
ए शहर-ए-लखनऊ
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Ae shahar-e-lakhnau-Palki 1967
Artists: Rajendra Kumar
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