Jul 15, 2020

बेदर्द ज़माने क्या तेरी-लाहौर १९४९

विंटेज युग की तरफ एक बार चलते हैं और एक गाना सुनते
हैं फिल्म लाहौर से. राजेंद्र कृष्ण की रचना है और इस गीत
की धुन श्याम सुन्दर ने तैयार की. आज के हिसाब से लगाएं
तो इस फिल्म को रिलीज़ हुए ७१ साल बीत गए.

करण दीवान, नर्गिस और कुलदीप कौर अभिनीत इस फिल्म
का निर्देशन एम एल आनंद ने किया था और निर्माण अभिनेता
करण दीवान के भाई ने किया. एम् एल आनंद ने सन १९५२
की फिल्म बेवफा का निर्देशन भी किया था. इसमें भी अभिनेत्री
नर्गिस मौजूद हैं.

कल हमने गानों के मीटर पर बात की थी. प्रस्तुत गाने का
मीटर भी कभी एमीटर तो कभी वोल्टमीटर हो जाता है. बाकी
समय ये फ्रीक्वेंसी मीटर की तरह चलता रहता है.

संगीतकार श्याम सुन्दर इसी दिन एक फिल्म के गीत की
रिकॉर्डिंग करते करते स्टूडियो में चल बसे थे. बॉलीवुड की कई
प्रतिभाओं को सुरा-प्रेम ने छीन लिया. संगीतकार श्याम सुन्दर
भी उन्हीं में से एक थे





गीत के बोल:

उस दिल की क़िस्मत क्या कहिये
उस दिल की क़िस्मत क्या कहिये
जिस दिल का सहारा कोई नहीं

बेदर्द ज़माने क्या तेरी
बेदर्द ज़माने क्या तेरी महफ़िल में हमारा कोई नहीं
बेदर्द ज़माने क्या तेरी महफ़िल में हमारा कोई नहीं
बेदर्द ज़माने

इस ग़म की रात के आँचल में वैसे तो हज़ारों तारे हैं
वैसे तो हज़ारों तारे हैं
वैसे तो हज़ारों तारे हैं
बन जाये जो आस मुसाफ़िर की
बन जाये जो आस मुसाफ़िर की ऐसा ही सितारा कोई नहीं
बेदर्द ज़माने क्या तेरी महफ़िल में हमारा कोई नहीं
बेदर्द ज़माने

उल्फ़त के चमन में ए नादां
उल्फ़त के चमन में ए नादां क्यूँ ढूँढ रहा है कलियों को
यहाँ ग़म के काँटे चुभते हैं
यहाँ ग़म के काँटे चुभते हैं फूलों का नज़ारा कोई नहीं
बेदर्द ज़माने क्या तेरी महफ़िल में हमारा कोई नहीं
बेदर्द ज़माने
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Bedard zamane kya teri-Lahore 1949

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