ऐ दिल कहाँ तेरी मंज़िल २ -माया १९६१
सलिल चौधरी के खजाने से एक मधुर गीत पेश है।
इस गीत के लता वाले संस्करण का जिक्र हम पहले कर
चुके हैं। इस गीत में भी लता मंगेशकर की छाप है।
जो महिला आवाज़ है, ऊंचे सुर वाली इस गीत में वो लता
की है। गीत के बोल मजरूह सुल्तानपुरी ने लिखे हैं
और इसको गाया है द्विजेन मुखर्जी ने। फिल्म का नाम है
माया और परदे पर देव आनंद नाम के कलाकार पर इसे
फिल्माया गया है।
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गाने के बोल:
ऐ दिल कहाँ तेरी मंज़िल
ना कोई दीपक है ना कोई तारा है
गुम है ज़मीं दूर आसमाँ
ऐ दिल कहाँ तेरी मंज़िल
किस लिये मिल मिल के दिल छूटते हैं
किस लिये बन बन महल टूटते हैं
किस लिये दिल टूटते हैं
पत्थर से पूछा शीशे से पूछा
ख़ामोश है सबकी ज़बाँ
ऐ दिल कहाँ तेरी मंज़िल
ढल गये नादाँ वो आँचल के साये
रह गये रस्ते में अपने पराये
रह गये अपने पराये
आँचल भी छूटा साथी भी छूटा
ना हमसफ़र ना कारवाँ
ऐ दिल कहाँ तेरी मंज़िल
ऐ दिल कहाँ तेरी मंज़िल
ना कोई दीपक है ना कोई तारा है
गुम है ज़मीं दूर आसमाँ
ऐ दिल कहाँ तेरी मंज़िल
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