जिसके सपने हमें रोज़-गीत १९७०
ज्यादातर गाने इस ब्लॉग पर ७० के दशक के हैं। अब वो क्या
महसूस करते हैं मुझे पता नहीं चल पाता क्यूंकि चुपके से ब्लॉग
पढ़ के भाई/बहिन लोग निकल जाते हैं, बिना टिप्पणी किए ।
अब मैं कोई ५ स्टार ब्लॉग राईटर तो हूँ नहीं कि मेरी लेखनी पर
वाह वाह की जाए।
आगे आपके लिए आज पेश है एक सुनहरा गीत (जिसको अंग्रेज़ी
में गोल्डन डूअट कहते हैं) फ़िल्म गीत से। गीत फिल्माया गया है
जुबिली कुमार राजेंद्र कुमार और माला सिन्हा पर। धुन बनाई है
कल्याणजी आनंदजी ने।
गाने के बोल:
जिसके सपने हमें रोज़ आते रहे
दिल लुभाते रहे
ये बता दो, बता दो
ये बता दो कहीं तुम वही तो नहीं
वही तो नहीं
ओ, जिसके सपने हमें रोज़ आते रहे
दिल लुभाते रहे
ये बता दो कहीं तुम वही तो नहीं
वही तो नहीं
जब भी झरनों से मैंने सुनी रागिनी
जब भी झरनों से मैंने सुनी रागिनी
मैं ये समझा तुम्हारी ही पायल बजी
ओ जिसकी पायल पे,
ओ जिसकी पायल पे हम दिल लुटाते रहे,
जान लुटाते रहे
ये बता दो कहीं तुम वही तो नहीं
वही तो नहीं
जिसके रोज़ रोज़ हम गीत गाते रहे, गुनगुनाते रहे,
ये बता दो कहीं तुम वही तो नहीं
वही तो नहीं
ये महकते हुए रास्ते,
खुल गए आप ही प्यार के वास्ते
दे रही है पता मद भरी वादियाँ
जैसे पहले भी हम तुम मिले हो यहाँ
ओ, कितने जन्मों से,
कितने जन्मों से, जिसको बुलाते रहे,
आजमाते रहे
ये बता दो कहीं तुम, वही तो नहीं
वही तो नहीं
ओ जिसके सपने हमें रोज़ आते रहे,
दिल लुभाते रहे
ये बता दो, बता दो
ये बता दो कहीं तुम वही तो नहीं
वही तो नहीं
तुम वही तो नहीं
तुम वही तो नहीं
तुम वही तो नहीं.....
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