दिल की आवाज़ भी सुन-हमसाया १९६८
"इश्क़ मासूम है इल्जाम लगाने पे ना जा" । ये पंक्तियाँ
बारंबार याद आती हैं। इनसे एक वाकया जुडा है । हुआ यूँ
एक लड़का अपने पड़ोस की एक लड़की को लेके भाग गया।
ये शायद १९७५ की बात है। बहुत दिन बीतने के बाद दोनों
लौट आए, कैसे लौटे , या लौटाए गए याद नहीं , मगर इस घटना के
बाद उस लड़की की ज़िन्दगी नर्क बन गई। करमजली, जनमजली
की उपाधियाँ उसको दिन में सैंकडों बार दी जाती । लड़की मासूम सी
थी और उसका दोष उतना नहीं था जितना उस मक्कार से दिखने वाले
युवक का। एक दिन इस विषय पर मित्रों के बीच चर्चा हो रही थी और
दूर किसीके ट्रांजिस्टर सेट पर ये गाना बजना शुरू हुआ। गाना चलता रहा
लेकिन जैसे ही ये पंक्तियाँ आई, हमारे दिमाग की सुई अटक गई। तभी से
इस गाने के शुरू होते ही वो लाइन दिमाग में घूमती है -इश्क़ मासूम है....
शेवान रिज़वी के लिखे गाने को धुन में बांधा है ओ पी नय्यर ने और गायक
.....आपको पता है, कौन है....... ;)
गाने के बोल:
दिल की आवाज़ भी सुन
दिल की आवाज़ भी सुन मेरे फ़साने पे न जा
मेरी नज़रों की तरफ़ देख ज़माने पे न जा
दिल की आवाज़ भी सुन मेरे फ़साने पे न जा
मेरी नज़रों की तरफ़ देख ज़माने पे न जा
इक नज़र देख ले
इक नज़र देख ले जीने की इजाज़त दे दे
रूठने वाले वो पहली सी मुहब्बत दे दे
इक नज़र देख ले जीने की इजाज़त दे दे
रूठने वाले वो पहली सी मुहब्बत दे दे
इश्क़ मासूम है
इश्क़ मासूम है, इलज़ाम लगाने पे न जा
वक़्त इनसान पे
वक़्त इनसान पे ऐसा भी कभी आता है
राह में छोड़के साया भी चला जाता है
वक़्त इनसान पे ऐसा भी कभी आता है
राह में छोड़के साया भी चला जाता है
दिन भी निकलेगा कभी
दिन भी निकलेगा कभी, रात के आने पे न जा
मेरी नज़रों की तरफ़ देख ज़माने पे न जा
दिल की आवाज़ भी सुन
मैं हक़ीक़त हूँ
मैं हक़ीक़त हूँ ये इक रोज़ दिखाऊँगा तुझे
बेगुनाही पे मुहब्बत की रुलाऊँगा तुझे
मैं हक़ीक़त हूँ ये इक रोज़ दिखाऊँगा तुझे
बेगुनाही पे मुहब्बत की रुलाऊँगा तुझे
दाग दिल के नहीं
दाग दिल के नहीं मिटते हैं मिटाने पे न जा
मेरी नज़रों की तरफ़ देख ज़माने पे न जा
दिल की आवाज़ भी सुन मेरे .....
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