Oct 6, 2009

चला भी आ- मन की ऑंखें १९७०

यादें पीछा नहीं छोड़ती चाहे कितना भी मन प्रयत्न कर ले।
एक गीत है जो मुझे और कई संगीत प्रेमियों को यादों के
भंवर में उतार देता है। इसको जब जब सुनो वही प्रभाव होता है
वहीदा रहमान पर फिल्माया गया एक बेहद कर्णप्रिय गीत है
जो फ़िल्म 'मन की ऑंखें' से लिया गया है जिसमे हीरो हैं धर्मेन्द्र।
ये एक युगल गीत है लता और रफी द्वारा गाया गया और
लक्ष्मीकांत प्यारेलाल द्वारा संगीतबद्ध है। इसकी एक पंक्ति मुझे
सदा से आकर्षित करती रही है-ख्वाबों का घरोंदा कहीं टूट न जाए।
बहुत ही दुखी मन से हिरोइन गाना शुरू करती है और अंतरा शुरू होने
के पहले ही उसे हीरो के दर्शन हो जाते हैं। हिन्दी गानों में समय कितना
तेज़ी से गुजरता है ना जी । :) हीरो का पदार्पण गाने में एक अंतरा ख़तम
होने के बाद होता है।



गाने के बोल:

चला भी आ, हो
आ जा रसिया
जाने वाले आ जा तेरी याद सताए
ख्वाबों का घरोंदा कहीं टूट न जाए

जाने वाले आ जा तेरी याद सताए
ख्वाबों का घरोंदा कहीं टूट न जाए

चला भी आ, हो
आ जा रसिया
जाने वाले आ जा तेरी याद सताए
ख्वाबों का घरोंदा कहीं टूट न जाए

मुरझा चले हैं अरमान सारे
धुंधला गए हैं सभी उजले नज़ारे
कैसे जियूंगी ग़मों के सहारे
तरसी निगाहें मेरी तुझको सदायें दें ,
धड़कन पुकारे

चला भी आ, हो
आ जा रसिया
दिल तो गया मेरा कहीं जान न जाए
जाने वाले आ जा तेरी याद सताए

चला भी आ...........

मेरी लगन को कहाँ तूने जाना
तेरे लिए तो मेरा दिल है दीवाना
हर साँस मेरी तेरा ही तराना
ये जिंदगानी क्या है
तेरी कहानी है तेरा ही फ़साना

तेरा मेरा वो है रिश्ता
के, टूटे जो बालाएं भी तो टूट न पायें
के, टूटे जो बालाएं भी तो टूट न पायें
के, टूटे जो बालाएं भी तो टूट न पायें

0 comments:

© Geetsangeet 2009-2020. Powered by Blogger

Back to TOP