Oct 7, 2009

जब भी कोई कंगना बोले-शौकीन १९८२

किशोर कुमार के गाये गीतों में से एक मेरा पसंदीदा
गीत आपके लिए हाज़िर है फ़िल्म शौकीन से। इस गीत से
कुछ यादें जुड़ी हुई हैं। फूजी कलर में बनी फ़िल्म शौकीन
तीन बुड्ढों की कहानी है जो जवानी के पीछे भागते हैं ।
मकसद या बेमकसद ये आपको फ़िल्म देखने के बाद ही मालूम होगा।
बहरहाल ये फ़िल्म एक साफ़ सुथरी फ़िल्म है। इसमे अशोक कुमार,
ए के हंगल और उत्पल दत्त की मुख्य भूमिकाएं हैं। साथ में रति
अग्निहोत्री और मिथुन चक्रवर्ती हैं। योगेश के लिखे इस गीत को
संगीत से संवारा है आर डी बर्मन ने। ये एक सचिन देव बर्मन की एक
पुरानी बंगाली धुन की नए फ्लेवर में प्रस्तुति है।ये फ़िल्म में दो बार
प्रस्तुत होता है। पार्श्व में बजता हुआ ये गीत फ़िल्म की अधि कहानी
बयां कर देता है।






गाने के बोल:


जब भी कोई कंगना बोले
पायल छनक जाए
सोयी सोयी दिल की धड़कन
सुलग सुलग जाए

करुँ जतन लाख मगर मन
मचल मचल जाए

जब भी कोई कंगना बोले
पायल छनक जाए
सोयी सोयी दिल की धड़कन
सुलग सुलग जाए

करुँ जतन लाख मगर मन
मचल मचल जाए

जब भी कोई कंगना बोले

छलक गए रंग जहाँ पर
उलझ गए नैना रे नैना
उलझ गए नैना

पाए नहीं ये मन बंजारा
कहीं भी ये चैना रे चैना
कहीं भी चैना

मेरे मन की प्यास अधूरी
मुझे भटकाए

जब भी कोई कंगना बोले
पायल छनक जाए
जब भी कोई कंगना बोले

कली कली झूमे रे भंवरा
अगन पे जल जाए पतंगा
अगन पे जल जाए

कली कली झूमे रे भंवर
अगन पे जल जाए पतंगा
अगन पे जल जाए

चंदा को चकोर निहारे
इसी में सुख पाये रे पाए
इसी में सुख पाए

जीवन से ये रस का बंधन
तोड़ा नहीं जाए

जब भी कोई कंगना बोले
पायल छनक जाए
सोयी सोयी दिल की धड़कन
सुलग सुलग जाए

करुँ जतन लाख मगर मन
मचल मचल जाए
मचल मचल जाए

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