दीवाना आदमी को बनाती हैं -काली टोपी लाल रुमाल १९५९
सबसे पहली इंसानी जरूरत है-दो वक्त की रोटी। दुनिया में सबसे ज्यादा
जद्दो-जेहद रोटी के लिए ही है। इसपर भी एक गाना है हिन्दी फ़िल्म
संगीत के खजाने में। ये एक दार्शनिक किस्म का गीत है और जीवन से
जुड़े हुए प्रमुख दृश्य इस गाने में समाहित हैं। परदे पर इसको गुजरे
ज़माने के कलाकार गा रहे हैं।
रोटियां क्या क्या नहीं करवा लेती मनुष्य से। कहते हैं इश्वर जीव के संसार
में आगमन के पूर्व ही उसके दाना पानी का इंतजाम कर देता है। वो आएगी
किस जरिये से ये एक अबूझ पहेली होती है। कोई भूखा मरता है तो कोई
ज्यादा खा के।
मजरूह के लेखन पर जनता ने किताबें नहीं लिखी, प्रशंसा में हजारों पोस्ट
नहीं लिखे ब्लॉग पर। प्रसिद्धि भी शायद किस्मत का खेल है। मजरूह ने
जितना भी लिखा संतुलित लिखा। उनके लेखन में बेवजह की कड़वाहट या
जरूरत से ज्यादा दर्शनवाद कभी महसूस नहीं हुआ। जरा गौर कीजिये
इसके आखिरी अंतरे पर: इंसान को चाँद में नज़र आती हैं रोटियां...
<span style="font-weight: bold;">गाने के बोल:</span>
दीवाना आदमी को बनाती हैं रोटियां
दीवाना आदमी को बनाती हैं रोटियां
ख़ुद नाचती हैं सबको नचाती हैं रोटियाँ
दीवाना आदमी को बनाती हैं रोटियां
बूढा चलाये खेल तो पापों से झूल के
बच्चा उठाये बोझ खिलौने को भूल के
बच्चा उठाये बोझ खिलौने को भूल के
देखा न जाए जो
देखा न जाए जो वो दिखाती हैं रोटियां
दिखाती हैं रोटियां
दीवाना आदमी को बनाती हैं रोटियां
दीवाना आदमी को बनाती हैं रोटियां
बैठी है जो ये चेहरे पर मलके जिगर का खून
दुनिया बुरा कहे इन्हे पर मैं तो ये कहूं
कोठे पे बैठ ओ,
कोठे पे बैठ आंख लड़ती हैं रोटियां
दीवाना आदमी को बनाती हैं रोटियां
दीवाना आदमी को बनाती हैं रोटियां
कहत अता एक फ़कीर के रखना ज़रा नज़र
रोटी को आदमी ही नहीं खाते बेखबर
अक्सर को आदमी को
अक्सर को आदमी को भी खाती हैं रोटियां
खाती हैं रोटियां
दीवाना आदमी को बनाती हैं रोटियां
दीवाना आदमी को बनाती हैं रोटियां
तुझको पते की बात बताऊँ मैं जानेमन
क्यूँ चाँद पे पहुँचने की है लगन
इंसान को चाँद में
इंसान को चाँद में नज़र आती हैं रोटियां
दीवाना आदमी को बनाती हैं रोटियां
दीवाना आदमी को बनाती हैं रोटियां
ख़ुद नाचती हैं सबको नचाती हैं रोटियाँ
दीवाना आदमी को बनाती हैं रोटियां
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Deewana aaadmi ko banati hain-Kali Topi Laal Rumal 1959
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