चलता रहे ये कारवां-चोर बाज़ार १९५४
सरदार मालिक एक पुराने ज़माने के संगीतकार थे।
काफ़ी सुरीली धुनों को बनने के बावजूद उनको वो प्रसिद्धि
नहीं मिल पाई जिसके वो हक़दार थे। ये उनकी धुन है फ़िल्म
चोर बाज़ार से। गायिका हैं लता मंगेशकर। इस गीत के बोल
लिखे हैं शकील बदायूनी ने। फ़िल्म देखने का सौभाग्य मुझे अभी तक
नहीं मिला है इसलिए कोई टिप्पणी करने में असमर्थ हूँ। इस गीत को
कई बार रेडियो पर सुना है और ये एक प्रेरणा देता सा प्रतीत होता है।
लोरी के रूप में इसका प्रयोग थोड़ा नयापन लिए हुए है यही इस गीत
की खूबी है।
गाने के बोल:
चलता रहे ये कारवां
उम्र-ए-रवां का कारवां
चलता रहे ये कारवां
उम्र-ए-रवां का कारवां
शाम चले, सहर चले
मंज़िल से बेखबर चले
बस यूँ ही उम्र भर चले
रुक ना सके यहाँ वहाँ
चलता रहे ये कारवां
उम्र-ए-रवां का कारवां
फूले फले मेरी कली
ग़म ना मिले तुझे कभी
गुज़रे खुशी में ज़िन्दगी
आए ना मौसम-ए-खिज़ां
चलता रहे ये कारवां
उम्र-ए-रवां का कारवां
दुनिया का तू हबीब हो
मंज़िल तेरी क़रीब हो
इन्सां तेरा नसीब हो
तुझ पे ख़ुदा की हो अमां
चलता रहे ये कारवां
उम्र-ए-रवां का कारवां
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