तारों में सजके-जल बिन मछली नृत्य बिन बिजली १९७१
इस गीत को आपने शादी के विडियो के साथ जरूर बजते सुना होगा।
मिक्सिंग करने वाले धुरंधर, इसका अक्सर इस्तेमाल करते हैं। जिसमे दूल्हा
दुल्हन के फोटो दो फ्रेमों में फिट करके उसको गुलाटियां खिलाई जाती हैं।
अधिकतर इसका प्रयोग तब होता जब बारात कहीं जा रही होती है, या फ़िर
जब दुल्हन स्टेज से उतर का भांवर के कार्यक्रम की ओर पैर बढ़ा रही होती है।
इस गीत का संगीत ही ऐसा है। जैसे ही इसका गीत के संगीत के हिस्से चालू होते,
दूल्हा दुल्हन के फोटो गुलाटियां खाने लगते। पहले पहल मुझे ये लगा था कि किसी
डरावनी फ़िल्म का संगीत है, जब तक मैंने इसका फ़िल्म को नहीं देखा। बाद में भ्रम
दूर हुआ और ये गीत मेरे पसंदीदा गीतों की सूची में जुड़ गया । वी शांताराम अपनी
अनूठी नृत्य परिकल्पनाओं के लिए जाने जाते हैं और आने वाले लंबे समय तक जाने
जायेंगे। ये गीत मुझे बहुत पसंद है जिसके गायक मुकेश हैं।
गाने के बोल:
तारों में सज के,
अपने सूरज से,
देखो धरती चली मिलाने
झनकी पायल मच गयी हलचल
अम्बर सारा लगा हिलने
है घटाओं का, दो नैन में काजल
धूप का मुख पे डाले सुनहरा सा आँचल
यूं लहराई, ली अंगडाई , लगी जैसे धनक खिलने
तारों में सज के,
अपने सूरज से,
देखो धरती चली मिलने
आग सी लपटे, जलती हुयी राहें
जी को दहलाए, बेचैन तूफ़ान की आहें
ना डरेगी, ना रुकेगी, देखे क्या हो, कहा दिल ने
तारों में सज के,
अपने सूरज से,
देखो धरती चली मिलने
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