किसी ने अपना बना के मुझको -पतिता १९५३
बनाना काफ़ी हिम्मत का काम था। ज्यादती की शिकार एक
युवती की कथा है ये। दुर्घटना की शिकार युवती का प्रेमी उसके
प्रति सहानुभूति और समझदारी का भाव रख कर उसको संबल
प्रदान करता है।
शंकर जयकिशन का प्रिय राग था-भैरवी. जोड़ी के दोनों सदस्यों
को इस राग से विशेष लगाव था. इस राग पर आधारित उन्होंने
कई नायब धुनें रचीं.
जब भैरवी की बात छिड़ी है तो आइये एक और गीत सुना जाए ।
फ़िल्म पतिता का ये गीत थोड़ा कम सुना हुआ है मगर गुणवत्ता
इसकी वही है जो एल्बम के बाकी गीतों में है। फ़िल्म के सभी
गीत गीतकार शैलेन्द्र के लिखे हुए हैं। उषा किरण नामक अभिनेत्री
इस गीत पर आको झूमती नज़र आएँगी। अभिनेत्री की भावनाओं
का निचोड़ इन पंक्तियों में स्पष्ट है- "जो ख्वाब रातों में भी न
आया, वो मुझको दिन में दिखा दिया"
गीत के बोल :
किसी ने अपना बना के मुझको,
मुस्कुराना सिखा दिया
अंधेरे घर में किसी ने हंस के,
चिराग जैसे जला दिया
किसी ने अपना बना के मुझको,
मुस्कुराना सिखा दिया
शर्म के मारे मैं कुछ न बोली
शर्म के मारे मैं कुछ न बोली
नज़र ने परदा गिरा दिया
मगर वो सब कुछ समझ गए हैं
के दिल भी मैंने गँवा दिया
किसी ने अपना बना के मुझको,
मुस्कुराना सिखा दिया
न प्यार देखा न प्यार जाना
न प्यार देखा न प्यार जाना
सुनी थी लेकिन कहानियाँ
सुनी थी लेकिन कहानियाँ
जो ख्वाब रातों में भी न आया
वो मुझको दिन में दिखा दिया
किसी ने अपना बना के मुझको,
मुस्कुराना सिखा दिया
वो रंग भरते हैं ज़िन्दगी में
वो रंग भरते हैं ज़िन्दगी में
बादल रहा है मेरा जहाँ
कोई सितारे लुटा रहा था
किसी ने दामन बिछा दिया
किसी ने अपना बना के मुझको,
मुस्कुटाना सिखा दिया
अंधेरे घर में किसी ने हंस के,
चिराग जैसे जला दिया
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Kisi ne apna bana ke-Patita 1953
Artists: Usha Kiran
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