साजन की गलियां छोड़ चले -बाज़ार १९४९
आइये दस साल और पीछे चला जाए। पिछला गीत आपने सुना वो
१९५९ की एक फ़िल्म से था और लता मंगेशकर का गाया हुआ था।
ये गीत भी लता मंगेशकर का गाया हुआ है और सन १९४९ में आई फ़िल्म
बाज़ार से है। लता की युवा आवाज़ को सुनने का अपना अलग ही आनंद
है जिससे आज की पीढ़ी वंचित है ।
इसकी धुन उस समय के प्रतिभाशाली संगीतकार श्याम सुंदर
ने बनाई है। श्याम सुंदर के बनाये गीतों में शायद सर्वाधिक लोकप्रिय गीत
हम इसको कह सकते हैं। इस फ़िल्म में श्याम और निगार सुल्ताना की मुख्य
भूमिकाएं हैं। ये गीत निगार सुल्ताना पर फिल्माया गया है। इस गीत के बारे में
बहुत कम श्रोताओं को पता है कि ये गीत किसने लिखा है। कमर जलालाबादी
इसके रचयिता हैं और उनको वो प्रसिद्धि नहीं मिल पाई जिसके वो हक़दार थे।
गाने के बोल:
साजन की गलियां छोड़ चले
दिल रोया आंसू बह न सके
ये जीना भी कोई जीना है
हम उनको अपना कह न सके
साजन की गलियां.....
जब उनसे बिछ्ड़ कर आने लगे
जब उनसे बिछ्ड़ कर आने लगे
रुक रुक के चले, चल चल के रुके
लब काँपे, आँखें भर आयीं
कुछ कहना चाहा कह न सके
साजन की गलियाँ छोड़ चले
दिल रोया आंसू बह न सके
साजन की गलियाँ....
उनके लिए उनको छोड़ दिया
ख़ुद अपने दिल को तोड़ दिया
हम उनके दिल में रहते थे
उनके क़दमों में रह न सके
साजन की गलियाँ छोड़ चले
दिल रोया आंसू बह न सके
साजन की गलियाँ....
साजन हैं वहाँ और हम हैं यहाँ
ऐसे दिल को ले जाएँ कहाँ
जो पास भी उन के रह न सके
और दर्द-ऐ-जुदाई सह न सके
साजन की गलियाँ छोड़ चले
दिल रोया आंसू बह न सके
साजन की गलियाँ.....
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