पीतल की मेरी गागरी- दो बूँद पानी १९७१
अभी कुछ दिन पहले जयदेव की पुण्यतिथि निकली। इस अवसर
पर उनका एक गीत याद आया । राजस्थान की जल समस्या पर
निर्मित फिल्म-दो बूँद पानी से। इस फिल्म का एक गीत हम ब्लॉग
पर पहले शामिल कर चुके हैं। प्रस्तुत गीत परवीन सुल्ताना और
मीनू पुरुषोत्तम का गाया हुआ है। परवीन सुल्ताना शास्त्रीय संगीत का
स्थापित नाम है और मीनू पंजाबी की एक प्रसिद्ध गायिका जिन्होंने
हिंदी फिल्मों के लिए भी कुछ गीत गाये हैं। मटके से ताल देना पुराना
ढंग है राजस्थानी लोक संगीत का। जयदेव ने इसका भरपूर इस्तेमाल
किया है इस गीत में । अब आपको ये भी बताता चलूँ कि ये फिल्म एक
फ्लॉप फिल्म थी और इसके गीतों के अलावा आपको ज्यादा जानकारी
नहीं मिलेगी । पीतल की गागरी केवल फिल्म की हिरोइन के सर पर है
बाकी जनता मिटटी के मटके से काम चला रही है।
गीत के बोल:
पीतल की मेरी गागरी
दिल्ड़ी से मोल मंगाई रे
पीतल की मेरी गागरी
दिल्ड़ी से मोल मंगाई रे
पांव में घुँघरू बांध के
अब पनिया भरण हम जाई रे
पांव में घुँघरू बांध के
अब पनिया भरण हम जाई रे
पीतल की मेरी गागरी
पायलिया बोले छुमक छुमक,
बदली है चाल, हाय हाय
बदली है चाल जवानी की
बदली है चाल जवानी की
चुनरी सरके इधर उधर,
बेसर्मी देख, होए होए
बेसर्मी देख दीवानी की
बेसर्मी देख दीवानी की
बदनामी होगी, गाँव में
चुनरी कहीं जो तूने गंवाई रे
बदनामी होगी गाँव में
चुनरी कहीं जो तूने गंवाई रे
पीतल की मेरी गागरी
हा,हा,हा...........
सन सन सन सन जिया करे
जब गगरी डूबे पानी में
जब गगरी डूबे पानी में
अपना मुखड़ा नया लगे,
हम जब जब, ओ हम जब जब
ओ हम जब जब देखें पानी में
हम जब जब देखें पानी में
गलों पे लाली आ गयी,
हाय किस ने ये आग लगायी रे
गलों पे लाली आ गयी,
हाय किस ने ये आग लगायी रे
पीतल की मेरी गागरी
इक दिन ऐसा भी था
पानी था गाँव में
पानी था गाँव में
लाते थे गगरी भर के
तारों की छांव में
तारों की छांव में
कहाँ से पानी लायें
कहाँ ये प्यास बुझायें
कहाँ से पानी लायें
कहाँ ये प्यास बुझायें
जल जल के बैरी धूप में
कम्हलाया रंग दुहाई रे
जल जल के बैरी धूप में
कम्हलाया रंग दुहाई रे
पीतल की मेरी गागरी
दिल्ड़ी से मोल मंगाई रे
पीतल की मेरी गागरी
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