यूँ हसरतों के दाग-अदालत १९५८
में नहीं हुए। उनके सबसे ज्यादा चर्चित गीतों में से एक है अदालत
फिल्म का 'यूँ हसरतों के दाग" । नर्गिस पर फिल्माया गया ये गीत
बड़े परदे पर देखने पर ज्यादा प्रभाव पैदा करता है। राजेंद्र कृष्ण की
लेखनी से निकली ये ग़ज़ल बेहद चर्चित है और आम श्रोता और ख़ास
श्रोता वर्ग में समान रूप से लोकप्रिय भी। इस गीत की तारीफ़ में इन्टरनेट
पर तमाम जगह आंग्ल भाषा प्रेमी बड़े बड़े निबंध लिख चुके हैं अतः ज्यादा
लिखने की ज़रुरत नहीं है इधर।
गीत के बोल:
यूँ हसरतों के दाग मोहब्बत में धो लिए
खुद दिल से दिल कि बात कही और रो लिए
यूँ हसरतों के दाग मोहब्बत में धो लिए
खुद दिल से दिल कि बात कही और रो लिए
यूँ हसरतों के दाग
घर से चले थे हम तो ख़ुशी की तलाश में
घर से चले थे हम तो ख़ुशी की तलाश में
ख़ुशी की तलाश में
गम राह में खड़े थे वही साथ हो लिए
खुद दिल से दिल की बात कही और रो लिए
यूँ हसरतों के दाग
मुरझा चुका है फिर भी ये दिल फूल ही तो है
मुरझा चुका है फिर भी ये दिल फूल ही तो है
हाँ फूल ही तो है
अब आप की ख़ुशी से काँटों में सो लिए
खुद दिल से दिल की बात कही और रो लिए
यूँ हसरतों के दाग
होठों को सी चुके तो ज़माने ने ये कहा
होठों को सी चुके तो ज़माने ने ये कहा
ज़माने ने ये कहा
ये चुप सी क्यूँ लगी है अजी कुछ तो बोलिए
खुद दिल से दिल की बात कही और रो लिए
यूँ हसरतों के दाग मोहब्बत में धो लिए
खुद दिल से दिल की बात कही और रो लिए
यूँ हसरतों के दाग
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