अजीब दास्तां है ये- दिल अपना और प्रीत पराई १९६०
"दिल एक मंदिर" और "दिल अपना और प्रीत परायी" दोनों फिल्मों
में शंकर जयकिशन का संगीत है। फिल्म के नाम में मैं अक्सर धोखा
खा जाता हूँ और एक फिल्म के गाने दूसरी में फिट कर दिया करता हूँ।
ऐसा आपके साथ भी होता होगा ज़रूर।
ये गीत एक पार्टी में गाया जा रहा है। पाश्चात्य प्रभाव वाला संगीत
होने के बावजूद ये गीत देसी ही लगता है। शैलेन्द्र के बढ़िया बोलों
को आवाज़ दी है गायिका लता मंगेशकर ने और इसे परदे पर गा
रही हैं मीना कुमारी। राज कुमार एक डॉक्टर हैं जिनकी शादी नादिरा
से होती है। शादी के बाद ये पार्टी दी जा रही है। मीना कुमारी जो कि
एक नर्स हैं वो डॉक्टर से प्रेम करती थी/हैं। अपनी उलझन भरी
भावनाओं को वे गीत के माध्यम से व्यक्त कर रही हैं। इस फिल्म
के एक गीत पर पहले हम चर्चा कर चुके हैं।
गीत के बोल:
अजीब दास्तां है ये
कहाँ शुरू कहाँ ख़तम
ये मंजिलें हैं कौन सी
ना वो समझ सके ना हम
अजीब दास्तां है ये
कहाँ शुरू कहाँ ख़तम
ये मंजिलें हैं कौन सी
ना वो समझ सकें ना हम
ये रौशनी के साथ क्यूँ
धुंआ उठा चिराग से
ये रौशनी के साथ क्यूँ
धुआं उठा चिराग से
ये ख्वाब देखती हूँ मैं
के जग पड़ी हूँ ख्वाब से
अजीब दास्तां है ये
कहाँ शुरू कहाँ ख़तम
ये मंजिलें हैं कौन सी
ना वो समझ सके ना हम
मुबारकें तुम्हें के तुम
किसी के नूर हो गए
मुबारकें तुम्हें के तुम
किसी के नूर हो गए
किसी के इतने पास हो
के सबसे दूर हो गए
अजीब दास्तां है ये
कहाँ शुरू कहाँ ख़तम
ये मंजिलें हैं कौन सी
ना वो समझ सके ना हम
किसी का प्यार ले के तुम
नया जहाँ बसाओगे
किसी का प्यार ले के तुम
नया जहाँ बसाओगे
ये शाम जब भी आएगी
तुम हमको याद आओगे
अजीब दास्तां है ये
कहाँ शुरू कहाँ ख़तम
ये मंजिलें हैं कौन सी
ना वो समझ सके ना हम
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Ajeeb dastan hai ye-Dil apna aur preet parayi 1960
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