यादों में वो-स्वामी १९७७
दर्द में डूबी हुई आवाज़ों में से एक है किशोर कुमार की आवाज़।
जितना उनके हास्य गीत गहराई लिए होते थे उसी तरह दर्द भरे
गीत में भी वे बेजोड़ हैं। लोग कहते हैं उनकी आवाज़ त्रियामी है।
मैं कहूँगा वो चतुरआयामी है। चौथा आयाम आप ध्यान से सुनिए
महसूस होने लगेगा । राजेश रोशन और राहुल देव बर्मन का संगीत
किशोर कुमार की आवाज़ के इर्द गिर्द घूमता रहा और जब तक
किशोर कुमार की सेवाएँ उनके लिए उपलब्ध रही, कुछ अविस्मरनीय
धुनें उनके खजाने से निकलीं।
राजेश रोशन ने उनके लिए कुछ अच्छे दर्दीले गीत बनाये हैं। गौर
करने लायक बात ये है कि अधिकतर दर्द भरे गीतों में बांसुरी की
आवाज़ आवश्यक तत्त्व होता है। ये एक ऐसा गीत है जो मुझे दुखी
करता है मगर एक अलग सा आनंद देता है जब भी इसको सुनो।
गीत पार्श्व में बज रहा है और उसपर एक पूरी कहानी चल रही है।
फिल्म स्वामी उन चुनिन्दा फिल्मों में से एक है जिसके सभी गीत
कर्णप्रिय हैं। गीत लिखा है अमित खन्ना ने। गिरीश कर्नाड और
शबाना आज़मी नाम के कलाकार आपको परदे पर दिखलाई देंगे।
गीत के बोल:
यादों में वो, सपनों में है
जाएँ कहाँ ,
धड़कन का बंधन तो धड़कन से है
साँसों से हूँ मैं कैसे जुदा
अपनों को दूं मैं कैसे भुला
यादों में वो, सपनों में है
जाएँ कहाँ ,
धड़कन का बंधन तो धड़कन से है
ये फूल ये कलियाँ सभी
रोक रही राहें मेरी
ये मीत ये सखियाँ सभी
ढूंढ रही निगाहें मेरी
हर मोड़ पर एक सपना खड़ा
जाना है मुश्किल मेरा
यादों में वो, सपनों में है
जाएँ कहाँ ,
धड़कन का बंधन तो धड़कन से है
नैना मेरे अंसुवन भरे
पूछ रहे चली है कहाँ
बहती नदी कहने लगी
तेरा तो है ये ही जहाँ
हर मोड़ पर कोई अपना खड़ा
देखूं मैं मुडके जहाँ
यादों में वो, सपनों में है
जाएँ कहाँ ,
धड़कन का बंधन तो धड़कन से है
साँसों से हूँ मैं कैसे जुदा
अपनों को दूं मैं कैसे भुला
यादों में वो, सपनों में है
जाएँ कहाँ ,
धड़कन का बंधन तो धड़कन से है
0 comments:
Post a Comment