Apr 29, 2010

लुट गए हम तो राहों में-मंजिल मंजिल १९८४

बात से बात निकलती है। कड़ियाँ जुडती चलती हैं अगर
कोई जोड़ना चाहे तो। हम पिछली कुछ पोस्ट में मसालों के
मसले पर चर्चा कर रहे थे। आइये इस कड़ी में अगली कड़ी
जोड़ते हैं। नासिर हुसैन साहब ने एक फिल्म सन १९८४ में
बनाई थी जिसका नाम है-मंजिल मंजिल। ये फिल्म भी कुछ
आश्चर्यजनक संगीत संयोजन वाले गीतों से भरी हुई थी और
इसमें भी आर डी बर्मन का संगीत है। फिल्म में सनी देवल और
डिम्पल कपाड़िया प्रमुख कलाकार हैं।

अब आप पूछेंगे की पिछले गीत (ज़बरदस्त) और इसमें क्या
कॉमन है ? एक चीज़ है वो है मिलता जुलता सेट। घास के टीले
इसमें भी वैसे ही हैं जैसे पिछले गीत में थे। दोनों गीतों को अगर
आप सुनेंगे तो संगीतकार का नाम खुद ब खुद आप पहचान जायेंगे,
मुझे बताने की ज़रुरत नहीं पड़ेगी। गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी हैं
और गायक कलाकार हैं शैलेन्द्र सिंह और आशा भोंसले। गीत में
दुसरे अंतरे में बजा बांसुरी का टुकड़ा आपको तीसरी मंजिल के गीत
"ओ मेरे सोना रे" की याद दिलाएगा। सुनते रहिये और पढ़ते रहिये
ये ब्लॉग।




गीत के बोल:

हो, लुट गए हम तो राहों में
हो, लुट गए हम तो राहों में
मंजिल खोयी दिल भी खोया मिल के आपसे

हो, लुट गए हम तो राहों में
हो, लुट गए हम तो राहों में
मंजिल खोयी दिल भी खोया मिल के आपसे

ओ, आपकी बाँहों की कसम
हम कभी झुकते ही ना थे
हो, रेशमी जुल्फों की कसम
हम कहीं रुकते ही ना थे
आंधी थे हम जलना भूले मिल के आपसे

लुट गए हम तो राहों में
लुट गए हम तो राहों में
मंजिल खोयी दिल भी खोया मिल के आपसे

हो, तीर क्या पत्थर भी नहीं
हाथ में नहीं दिखलाने को
किस अदा से मारा है आपने दीवाने को
जीना मुश्किल मरना मुश्किल मिलके आपसे

लुट गए हम तो राहों में
लुट गए हम तो राहों में
मंजिल खोयी दिल भी खोया मिल के आपसे

हा, ए हा, ए हा
हो हो, हो हो, हो हो, हो

हो, मैं क्या जानूं तुम इतनी मौज में आ जाओगे
पहले थामोगे ऊँगली फिर गले पड जाओगे
तौबा तौबा मेरी तौबा मिल के आपसे
हो, फँस गए हम तो राहों में
फँस गए हम तो राहों में
तौबा तौबा मेरी तौबा हिल के आपसे
...........................................................................
Lut gaye ham to rahon mein-Manzil manzil 1984

Artists: Sunny Deol, Dimple Kapadia

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