आई हूँ बड़ी दूर से-सखी रोबिन १९५७
पिछले गीत में नायिका दूर से आयीं थी और इस गीत में भी
बड़ी दूर से आ रही है । पिछला अंदाज़ मजरूह का था तो ये
गीतकार योगेश का है। दोनों गीत सन १९५७ के हैं इनमे से
एक लोकप्रिय हुआ दूसरा नहीं। तुमसा नहीं देखा एक हिट
फिल्म थी और सखी-रोबिन गुमनामी के अंधेरों में कहीं खो गई।
रोबिन हुड के चरित्र से फिल्मकार काफी प्रभावित दिखे।
हॉलीवुड और बॉलीवुड में रोबिन हूड के ऊपर कई फिल्मों
का निर्माण हुआ। १९५७ में एक हिंदी फिल्म बनी-सखी रोबिन
इसमें रंजन रोबिन बने और शालिनी उनकी सखी। कहनियों को
रोचक बनाने के लिए उनमे सखियों के किरदार डाले जाते हैं
हैं। इस गीत में शीला वाज़ नमक नायिका परदे पर गीत गा
रही हैं। पार्श्वगायन किया है सुमन कल्यानपुर ने, गीत योगेश
का लिखा हुआ है और संगीत दिया है रोबिन बैनर्जी ने ।
गीत के बोल:
आई हूँ बड़ी दूर से
देखो न हमें घूर के
आई हूँ बड़ी दूर से
देखो न हमें घूर के, ओये होए
मेरे होंठों पे तराने
क्या क्या लायी हूँ खजाने
वई वई सुन लो ज़माने
वई वई सुन लो ज़माने
आई हूँ बड़ी दूर से
देखो न हमें घूर के, ओये होए
क्या क्या लायी हूँ खजाने
वई वई सुन लो ज़माने
वई वई सुन लो ज़माने
आई हूँ बड़ी दूर से
जहाँ से मैं आई हूँ
वो ख्वाबों की बस्ती है
रश्क करती है ज़िन्दगी
हर कदम पे मस्ती है
जहाँ से मैं आई हूँ
वो ख्वाबों की बस्ती है
रश्क करती है ज़िन्दगी
हर कदम पे मस्ती है
आई हूँ बड़ी दूर से
देखो न हमें घूर के, ओये होए
क्या क्या लायी हूँ खजाने
वई वई सुन लो ज़माने
वई वई सुन लो ज़माने
ये दुनिया की राहों में
ग़मों का ठिकाना है
दूर कहीं अम्बर तले
मेरा आशियाना है
ये दुनिया की राहों में
ग़मों का ठिकाना है
दूर कहीं अम्बर तले
मेरा आशियाना है
आई हूँ बड़ी दूर से
देखो न हमें घूर के, ओये होए
मेरे होंठों पे तराने
क्या क्या लायी हूँ खजाने
वई वई सुन लो ज़माने
वई वई सुन लो ज़माने
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