पत्ता पत्ता बूटा बूटा-एक नज़र १९७२
ये है एक लता और रफ़ी का गाया युगल गीत -पत्ता पत्ता बूटा बूटा।
कभी कभी कुछ शब्द विशेष लोकप्रिय हो जाते हैं फ़िल्मी गीतों द्वारा।
अमूमन कविताओं में उपयोग होने वाले कुछ ख़ास शब्द फ़िल्मी गीतों
से नदारद रहते हैं। मीर तकी मीर की ग़ज़ल "पत्ता पत्ता बूटा बूटा" से
इसकी शुरूआती पंक्तियाँ ली गई हैं। गीत मजरूह का लिखा हुआ है ।
इस गीत के साथ मेहँदी हसन की गाई मीर की ग़ज़ल भी सुनिए, आनंद
दुगना हो जायेगा। गीत की पंक्तियों पर गौर फरमाएं-जाने ना जाने गुल ही
ना जाने बाग़ तो सारा जाने है। गली, शहर, दुनिया को मालूम है मेरा
हाल ..........
फिल्म इक ऑफ-बीत फिल्म कहलाती है और इसका निर्देशन
बी आर इशारा साहब ने किया है जिन्होंने काफी तादाद में
लीक से हट कर फ़िल्में बनायीं। जैसा कि हश्र उनकी फिल्मों का
अक्सर हुआ करता, ये फिल्म भी बॉक्स ऑफिस से रूठ गई।
१) एक नज़र का गीत
२) मेहँदी हसन की गाई ग़ज़ल-पत्ता पत्ता बूटा बूटा -
गीत के बोल:
पत्ता पत्ता बूटा बूटा
हाल हमारा जाने हैं
पत्ता पत्ता बूटा बूटा
हाल हमारा जाने हैं
पत्ता पत्ता
जाने ना जाने गुल ही ना जाने
बाग़ तो सारा जाने है
पत्ता पत्ता बूटा बूटा
हाल हमारा जाने हैं
पत्ता पत्ता
कोई किसी को चाहे
तो क्यूँ गुनाह समझते हैं लोग
कोई किसी की खातिर
तडपे अगर तो हँसते हैं लोग
बेगाना आलम है सारा
यहाँ तो कोई हमारा
दर्द नहीं पहचाने है
पत्ता पत्ता बूटा बूटा
हाल हमारा जाने हैं
पत्ता पत्ता
चाहत के गुल खिलेंगे
चलती रहे हज़ार आँधियाँ
हम तो किसी चमन में
बाँधेंगे प्यार का आशियाँ
ये दुनिया बिजली गिराए
ये दुनिया काँटे बिछाए
इश्क़ मगर कब माने है
पत्ता पत्ता बूटा बूटा
हाल हमारा जाने हैं
पत्ता पत्ता
दिखलाएंगे जहाँ को
कुछ दिन जो ज़िन्दगानी है और
कैसे न हम मिलेंगे
हमने भी दिल में ठानी है और
अभी मतवाले दिलों की
मुहब्बत वाले दिलों की
बात कोई क्या जाने है
पत्ता पत्ता बूटा बूटा
हाल हमारा जाने हैं
पत्ता पत्ता
जाने ना जाने गुल ही ना जाने
बाग़ तो सारा जाने है
पत्ता पत्ता बूटा बूटा
हाल हमारा जाने हैं
पत्ता पत्ता
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