नज़रों में समाने से करार-हैदराबाद की नाजनीन १९५२
रंगीन युग से वापस श्वेत श्याम की ओर चला जाए एक बार फिर।
कहा भी गया है कि सबसे खूबसूरत रंग काला होता है।
कुछ साल पहले तक मुझे बस ये मालूम था कि इस नाम की
कोई फिल्म है, वो भी इसलिए कि इसमें वसंत देसाई का संगीत
है। फिल्म के गीत भी सुनने के लिए उपलब्ध नहीं थे। तकरीबन
७ साल पहले ये गीत सुनाई दिया । अब तो ये यू-ट्यूब पर देखने
के लिए भी उपलब्ध है। इसी को शायद हम सभी लोग कहते हैं
टेक्नोलोजिकल रेवोल्यूशन। तकनीकी के माध्यम से कई
सुप्त, गुप्त एवम लुप्त चीज़ें प्रकट हो गई हैं।
फिल्म में गुज़रे ज़माने के कुछ यादगार गीत हैं। प्रस्तुत गीत
फिल्माया गया है खूबसूरत निगार सुल्ताना पर। गीत लिखा
है नूर लखनवी ने और इसकी धुन बनाई है वसंत देसाई ने।
गीत गा रही हैं राजकुमारी जिनकी स्पष्ट और बुलंद आवाज़
के कई दीवाने आज भी मौजूद हैं।
गीत के बोल:
नज़रों में समाने से करार आ ना सकेगा
नज़रों में समाने से करार आ ना सकेगा
तुम पास नहीं दिल को ये बहला ना सकेगा
हाँ , नज़रों में समाने से करार आ ना सकेगा
तस्वीर निगाहों में है खामोश तुम्हारी
जो सुन नहीं सकती कभी फरियाद हमारी
ये खाली तसव्वुर किसी काम, आ ना सकेगा
तुम पास नहीं दिल को ये बहला ना सकेगा
नज़रों में समाने से करार आ ना सकेगा
आएगा ख्याल आ के, हो हो हो
आएगा ख्याल आ के गुज़रता ही रहेगा
आहें कोई दिल थम के भरता ही रहेगा
तस्कीन की सूरत कोई बतला ना सकेगा
तुम पास नहीं दिल को ये बहला ना सकेगा
हाँ, नज़रों में समाने से करार आ ना सकेगा
टकरायेंगे हम सर कभी दीवार से दर से
हर सांस में उबलेगा लहू ज़ख्म-ए-जिगर से
दिल ढूंढेगा, आ आ आ
दिल ढूंढेगा तड़पेगा तुम्हें पा ना सकेगा
तुम पास नहीं दिल को ये बहला ना सकेगा
हाँ, नज़रों में समाने से करार आ ना सकेगा
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