थोड़ी सी ज़मीन थोडा आसमान-सितारा
तुमसे थोड़ी सी ज़मीन ही तो मांगी थी तुम तो हलकट प्रोपर्टी
ब्रोकर की तरह थोड़ी सी धूल थमा के चलते बने। थोडा आसमान
क्या मांग लिया तुमने तो हमें भैंस की तरह पोखर में डुबो दिया।
अब भाई दारू पी के बढ़िया बढ़िया शेर निकलते होंगे दिल से, हम
तो चाय और भजिये पर जिंदा रहने वाले प्राणी हैं अतः बासी
भजिये खाने के बाद आने वाली डकार के अंदाज़ में ऐसे ही उदगार
प्रकट हो पा रहे हैं, बतलाइए क्या किया जाए।
आइये सुनें एक आशावादी गीत जो देखने और सुनने दोनों में आनंद
देता है। गुलज़ार का लिखा और संगीतकार पंचम उर्फ़ आर डी बर्मन
का संगीतबद्ध किया ये गीत गा रहे हैं लता और भूपेंद्र। सौंधी मिटटी
और लेपे हुए चूल्हे को सुनें ध्यान लगा कर और बाजरे के या चने के
जिस खेत में आपका जी चाहे कौवे उड़ायें।
सपने ज़रूर देखने चाहिए मगर उनको अमल में लाने का पुख्ता
प्रोग्राम होना ज़रूरी है।
गीत के बोल:
ला ला ला ला ला ला, ला ला ला ला ला ला
थोड़ी सी ज़मीन थोड़ा आसमान
तिनकों का बस एक आशियाँ
थोड़ी सी ज़मीन थोड़ा आसमान
तिनकों का बस एक आशियाँ
मांगा है जो तुमसे वो ज्यादा तो नहीं है
देने को तो जान दें दें, वादा तो नहीं है
कोई तेरे वादों पे जीता हैं कहाँ
मेरे घर के आँगन में, छोटा सा झूला हो
सौंधी सौंधी मिटटी होगी, लेप हुआ चूल्हा हो
थोड़ी थोड़ी आग होगी, थोड़ा सा धुंआ
रात कट जायेगी तो कैसे दिन बिताएंगे
बाजरे के खेतों में कौवे उड़ायेंगे
बाजरे के टिक्कों जैसे, बेटे हो जवान
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