कैसा जादू डाला रे बलमा -फुटपाथ १९५३
आपको फिल्म फुटपाथ के दो गीत हम सुनवा चुके हैं अब तक।
फुटपाथ का अर्थ है पैदल चलने वालों के लिए रास्ता। सड़क
वाहनों के लिए बनाई जाती है, मगर हमारे देश में आपको
दुपहिया वाहन चालक फुटपाथ का उपयोग और पैदल चालक
सड़क का दुरूपयोग करते हुए मिल जायेंगे। आधुनिक परिभाषा
है इसकी-अतिक्रमित सार्वजनिक स्थान जिसका सब्जी बेचने
वाले से लेकर पंचर जोड़ने वाले तक सभी सामान रूप से अपनी
पैतृक संपत्ति समझ के उपयोग करते हों। छोटे बच्चे इसको अपनी
तोतली भाषा में फूट-फाट भी कहते हैं, जी हाँ वही स्थान जो सडक
के किनारे थोड़ा ऊंचा सा एक पट्टी जैसा सड़क के साथ साथ
दूर तक बना हुआ दिखाई देता है। कुछ फुटपाथों की दुर्दशा देख
कर लगता हैं बच्चे इसको सही रूप में पहचान लेते हैं जो हम जैसे
मूढ़ मति इतना ज्ञान बटोर कर भी नहीं कर पाते।
खैर फिल्म फुटपाथ में फुटपाथ का कितना उपयोग हुआ ये मुझे
समझ नहीं आया। फिल्म का तीसरा गीत सुनते हैं जो अपने समय
के लिहाज़ से काफी बोल्ड गीत है। मीना कुमारी इस गीत में
आपको संगीतमय स्नान करती दिखाई देंगी। आशा भोंसले की
आवाज़ है, मजरूह के बोल हैं और संगीत एक बार फिर से
ख़य्याम साहब का। ये गीत वैसे हिंदी फिल्मों के प्रसिद्ध स्नान
गीतों की श्रेणी में नहीं आता है।
गीत के बोल:
कैसा जादू डाला रे बलमा ना जाने
खड़े खड़े मचले रे सैयां नहीं माने
कैसा जादू डाला रे बलमा ना जाने
खड़े खड़े मचले रे सैयां नहीं माने
ला ला ला ला ला ला ला ला ला ला ला ला
कैसा जादू डाला रे बलमा ना जाने
खड़े खड़े मचले रे सैयां नहीं माने
गीत के बाकी बोल की ज़रुरत महसूस करें तो एक चटका लगा
के ब्लॉग को धन्य करें।
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