Jul 17, 2011

रोज़ शाम आती थी-इम्तिहान १९७४

अभिनेत्री नूतन और तनूजा का कैरियर साठ के और सत्तर के दशक में
साथ साथ चला. नूतन ने तो जल्दी ही अपना ऊंचा मुकाम हासिल कर
लिया फिल्म जगत में मगर तनूजा को काफी संघर्ष के बावजूद, (यहाँ
संघर्ष का तात्पर्य अभिनय कला से हैं न कि फ़िल्में पाने के लिए संघर्ष
से) वो स्थान नहीं मिल पाया की उनकी किसी एक फिल्म को दर्शक
याद करें. प्रस्तुत गीत लिया गया है फिल्म इम्तिहान से जो सन १९७४
की फिल्म है. मजरूह के आकर्षक बोलों को स्वर दिया है लता मंगेशकर
ने. फिल्म में संगीत है लक्ष्मीकांत प्यारेलाल का. इस गीत में विनोद खन्ना
ने बेहतर अभिनय किया है. नायिका के कपडे कुछ अजीब से लगेंगे आपको
सन ७० के आस पास और बाद में कुछ एक फ़िल्में ऐसी आयीं जिनमें
नायकों और नायिकाओं की पोशाकें कुतूहल का विषय हुआ करती थीं.

गीत में कैमरे के साथ एक फ़िल्टर लगाया गया है जिससे सुनहरी धूप वाले
समय को भी शाम बना दिया गया है. ये करिश्मा पकड़ में आ जाता है
गीत के बीच में, जहाँ आधी धूप आधी छांव वाली कहानी दिखाई देती है.
ये होता है अन्तर शुरू होते समय. ऐसे कारनामे विडियो का मज़ा किरकिरा
कर देते हैं.




गीत के बोल:

ला ला ला ला ला ला ला ला ला
रोज़ शाम आती थी मगर ऐसी न थी
रोज़ रोज़ घटा छाती थी मगर ऐसी न थी
रोज़ शाम आती थी मगर ऐसी न थी
रोज़ रोज़ घटा छाती थी मगर ऐसी न थी
ये आज मेरी ज़िन्दगी में कौन आ गया
रोज़ शाम आती थी मगर ऐसी न थी
रोज़ रोज़ घटा छाती थी मगर ऐसी न थी

डाली में ये किसका हाथ करे इशारे बुलाए मुझे
झूमती चंचल हवा छूके तन गुदगुदाए मुझे
हौले हौले धीरे धीरे कोई गीत मुझको सुनाए
प्रीत मन में जगाए
खुली आँख सपने दिखाए
दिखाए दिखाए दिखाए
खुली आँख सपने दिखाए

ये आज मेरी ज़िन्दगी में कौन आ गया
रोज़ शाम आती थी मगर ऐसी न थी
रोज़ रोज़ घटा छाती थी मगर ऐसी न थी

अरमानों का रंग है जहाँ पलकें उठाती हूँ मैं
हँस हँस के है देखती जो भी मूरत बनाती हूँ मैं
जैसे कोई मोहे छेड़े दिल खो और भी जाती हूँ मैं
जगमगाती हूँ मैं
दीवानी हुई जाती हूँ मैं
दीवानी दीवानी दीवानी
दीवानी हुई जाती हूँ मैं

ये आज मेरी ज़िन्दगी में कौन आ गया
रोज़ शाम आती थी मगर ऐसी न थी
रोज़ रोज़ घटा छाती थी मगर ऐसी न थी
....................................
Roz shaam aati thi-Imtihaan 1974

0 comments:

© Geetsangeet 2009-2020. Powered by Blogger

Back to TOP