छोड़ आए हम-माचिस १९९६
अगला गीत सुनिए. जैसा कि गीत के नीचे लिखे कमेन्ट में जिक्र है-
गीत गंभीरता से सुनने की आवश्यकता है. तनाव और चिंता के क्षणों
में भी कुछ देर आनंद किस तरह लिया जा सकता है, शायद यही
सन्देश देता सा सुनाई देता है ये गीत. गुलज़ार के लिखे इस गीत को
चार गायक गा रहे हैं -हरिहरन, सुरेश वाडकर, विनोद सहगल और के.के.
ये गीत भी काफी सुना गया जनता द्वारा.
गीत में ओम पुरी को भी दो पंक्तियाँ गाते दिखाया गया है.
छोड़ आए हम, वो गलियाँ
छोड़ आए हम, वो गलियाँ
छोड़ आए हम, वो गलियाँ
छोड़ आए हम, वो गलियाँ
जहाँ तेरे पैरों के, कँवल गिरा करते थे
हँसे तो दो गालों में, भँवर पड़ा करते थे
जहाँ तेरे पैरों के, कँवल गिरा करते थे
हँसे तो दो गालों में, भँवर पड़ा करते थे
हे, तेरी कमर के बल पे, नदी मुड़ा करती थी
हँसी तेरी सुन सुन के, फ़सल पका करती थी
छोड़ आए हम, वो गलियाँ
छोड़ आए हम, वो गलियाँ
हो, जहाँ तेरी एड़ी से, धूप उड़ा करती थी
सुना है उस चौखट पे, अब शाम रहा करती है
जहाँ तेरी एड़ी से, धूप उड़ा करती थी
सुना है उस चौखट पे, अब शाम रहा करती है
लटों से उलझी-लिपटी, इक रात हुआ करती थी
हो,कभी कभी तकिये पे, वो भी मिला करती है
छोड़ आए हम, वो गलियाँ
छोड़ आए हम, वो गलियाँ
दिल दर्द का टुकड़ा है, पत्थर की डली सी है
इक अंधा कुआँ है या, इक बंद गली सी है
इक छोटा सा लम्हा है, जो ख़त्म नहीं होता
मैं लाख जलाता हूँ, यह भस्म नहीं होता
यह भस्म नहीं होता
छोड़ आए हम, वो गलियाँ
वो गलियाँ
छोड़ आए हम, वो गलियाँ
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Chhod aaye hum-Maachis 1996
Artists: Chandachud Singh, Tabu, Om Puri
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