Jan 7, 2015

हम हैं मताए-कूचा-ओ-बाज़ार की तरह-दस्तक १९७०

आपको फिल्म दस्तक का एक गीत-बइयाँ ना धरो बलमा
सुनवाया था पहले। अब सुन लेते हैं फिल्म का दूसरा गीत जो
इस प्रकार से है-हम हैं मताए-कूचा--बाज़ार की तरह
मजरूह की लेखनी की गहराई अगर आपको महसूस करनी
हो तो इसे ध्यान से अवश्य एक बार सुनें। इस गीत में हर
चीज़ संतुलन में है-गायकी, ओर्केस्ट्रा और बोल तो इस गीत की
विशेषता हैं। एक बेबसी गाने वाली की, एक बेबसी है उसके पति
की पेशानी पर, ग्राहक नुमा व्यक्ति घर में बैठ के गीत सुन रहा
है और कोठी अंदाज़ में दाद दे रहा है। ग्राहक को तो आप पहचान
ही गये होंगे, फिल्म पाकीज़ा में भी यही जनाब ग्राहक के रूप में परदे
पर दिखाई देते हैं। फिल्म 'डान' में ये साहब नारंग के किरदार में मौजूद
हैं। इनका नाम है कमल कपूर

हिंदी सिनेमा के आवश्यक तत्वों जैसे कमल कपूर तकरीबन १०० से
ऊपर फिल्मों में दिखाई दिए मगर उन्हें लम्बी चरित्र भूमिकाएं नसीब
नहीं हुयींअपने छोटे रोल में भी उन्होंने अपनी छाप अवश्य छोड़ी है
गीत में दो दुखी आत्माएं और दिखेंगी आपको वो हैं-प्रसिद्ध चरित्र अभिनेता
मनमोहन कृष्ण और अभिनेत्री नर्गिस के भाई अनवर हुसैनआपसे
कलाकारों का परिचय तो करवा दिया अब गीत के विषय में कुछ और
बातें की जाएँमजरूह के साथ मदन मोहन ने ज्यादा फ़िल्में नहीं कीं
जितनी भी कीं उनके गीत ज्यादा बजते हैं बनिस्बत दूसरे उन गीतकारों
के जिनके साथ मदन मोहन ने काम कियाइसमें राजेंद्र कृष्ण का नाम
भी जोड़ लीजिये जिनके साथ भी कई लोकप्रिय गीत मदन मोहन तैयार
कर पाएराजा मेहँदी अली खान के साथ मदन मोहन की केमिस्ट्री अच्छी
जमी और लम्बे समय तक कायम रहीएक बारीक फर्क को आपने भी
महसूस किया होगा-फिल्म लैला मजनू(१९७५) जिसके गीतों के बारे
में कहा जाता है कि वे मदन मोहन की सर्वश्रेष्ठ धुनें नहीं हैं, साहिर
के बोलों की वजह से गीत चलेफिल्म के गीत बेहद लोकप्रिय हुए
आम जनता के विचारों और पसंद से तादतम्य बिठा पाना कुछ ही
गीतकारों के बस कि बात रहीसाहित्यिक अलंकरण और उपमाओं
के मामले में कई गीतकार ऐसे भी हुए जिन्होंने गीतों का मान बढाया
लेकिन लोकप्रियता की निरंतरता बनाये रखना मजरूह, साहिर, शैलेन्द्र
हसरत जयपुरी, इन्दीवर, राजेंद्र कृष्ण और आनंद बक्षी के बस की ही
बात रही

निबंध कुछ ज्यादा ही लम्बा होता जा रहा है, बाकी की चर्चा फिर कभी



गीत के बोल:

हम हैं मताए-कूचा--बाज़ार की तरह
हम हैं मताए-कूचा--बाज़ार की तरह
उठती है हर निगाह खरीदार की तरह
उठती है हर निगाह खरीदार की तरह

हम हैं मताए-कूचा--बाज़ार की तरह

वो तो नहीं हैं और मगर दिल के आस पास
दिल के आस पास
गिरती है कोई शय निगाह--यार की तरह
गिरती है कोई शय निगाह--यार की तरह

हम हैं मताए-कूचा--बाज़ार की तरह

मजरूह लिखा रहे हैं वो अहले-वफ़ा का नाम
मजरूह लिखा रहे हैं वो अहले-वफ़ा का नाम
अहले-वफ़ा का नाम
हम ही खड़े हुए हैं गुनाहगार की तरह
उठती है हर निगाह खरीदार की तरह

हम हैं मताए-कूचा--बाज़ार की तरह

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