अपने जीवन की उलझन को-उलझन १९७५
जब ये किसी पहाड़ी क्षेत्र के एक लेखा के लिए प्रयुक्त हुए थे
एक दैनिक के कॉलम में. उसके बाद इस शब्द समूह का मैंने
काफी प्रयोग किया. जैसे उदाहरण के लिए एक घटिया घासलेटी
कवि ह्रदय के हिलोरे पर ध्यान दीजिए-
कभी बर्फ समझ के जमा दिया
कभी आइसक्रीम सा पिघला दिया
कभी लौंड्री में धुला दिया
कभी बिना कलफ प्रेस करा दिया
ये पंक्तियाँ मुझे एक जगह सड़ा सा पिज्ज़ा खाते हुए दिमाग में
आये थे. हो सकता है आज ये पंक्तियाँ घासलेट सी बसाती हों
क्या पता आज से १० साल बाद ये सुपर डुपर हिट किसी गीत
की पंक्तियाँ बन जाएँ. कुछ भी संभव है. आप लोजिक पर न
ही जाएँ तो अच्छा है. जब जनता आटा पिसवा सकती है तो
बर्फ को क्यूँ नहीं जमाया जा सकता? आज तक कितनों ने
बोला-गेंहू पिसवाने जा रहे हैं ?
छोडिये ये सब, ये सब उलझनें हैं. आज आपको उलझन फिल्म
से एक गीत सुनवाते हैं. एम् जी हशमत का लिखा हुआ
सरल शब्दों वाला एक दमदार गीत है ये. किशोर कुमार की
आवाज़ है और कल्याणजी आनंदजी का संगीत है.
गीत के बोल:
अपने जीवन की उलझन को कैसे मैं सुलझाऊं
अपने जीवन की उलझन को कैसे मैं सुलझाऊं
अपनो ने जो दर्द दिये है कैसे मैं बतलाऊँ.
प्यार के वादे हो गए झूठे
प्यार के वादे हो गए झूठे
वफ़ा के बंधन टूटे
वफ़ा के बंधन टूटे
बन के जीवन साथी कोई
चैन मेरा क्यूँ लूटे
चैन मेरा क्यूँ लूटे
ऐसे जीवन साथी से
ऐसे जीवन साथी से
मैं कैसे साथ निभाऊं
अपने जीवन की उलझन को कैसे मैं सुलझाऊं
अपने जीवन की उलझन को
कैसे कैसे भेद छुपाये
कैसे कैसे भेद छुपाये
हाथों की रेखाएं
हाथों की रेखाएं
कोई न जाने इस जीवन को
ये किस ओर ले जाएँ
ये किस ओर ले जाएँ
पढ़ न पाऊँ लेख विधि का
पढ़ न पाऊँ लेख विधि का
पल पल मैं घबराऊँ
अपने जीवन की उलझन को कैसे मैं सुलझाऊं
अपनो ने जो दर्द दिये है कैसे मैं बतलाऊँ.
अपने जीवन की उलझन को
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Apne jeewan ki uljhan ko-Uljhan 1975
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