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Sep 15, 2015

अपने जीवन की उलझन को(लता)-उलझन १९७५

आपको उलझन फिल्म का शीर्षक गीत सुनवाया था कुछ समय
पहले जो किशोर कुमार का गाया हुआ है. अब सुनते हैं इस गीत
का महिला संस्करण. इसे लता मंगेशकर ने गया है. गौरतलब
है सुलक्षणा पंडित जो की स्वयं गायिका हैं उनके लिए इस गीत
को लता गा रही हैं.

सुलक्षणा पंडित ने लता के कई गीत डबिंग आर्टिस्ट के तौर पर
गाये हैं. डबिंग आर्टिस्ट वो होता है जो गीत बनते समय गाया
करता है, गीत पूरा हो जाने के बाद जब मूल गायक उपलब्ध
होता है तो उससे फाइनल गीत गवा लिया जाता है. ऐसी सुविधा
के बारे में कम ही लोगों को मालूम है. कल्याणजी आनंदजी अगर
चाहते तो इस गीत को सुलक्षणा पंडित से भी गवा सकते थे.
खैर जो भी हुआ हो, गीत बढ़िया है और संगीतकार के चयन
का मामला हम अपनी चर्चा में नहीं लाते क्यूंकि हमें इस बारे
में ज्यादा जानकारी नहीं है, ठीक है न भाई लोग(बहनें भी).




गीत के बोल:

अपने जीवन की उलझन को कैसे मैं सुलझाऊं
अपने जीवन की उलझन को कैसे मैं सुलझाऊं
बीच भंवर में नाव है मेरी कैसे पार लगाऊँ

दिल में ऐसा दर्द छुपा है
दिल में ऐसा दर्द छुपा है
मुझसे सहा न जाए
मुझसे सहा न जाए
कहना तो चाहूँ अपनों से मैं
फिर भी कहा न जाए
फिर भी कहा न जाए
आंसू भी आँखों में आये
आंसू भी आँखों में आये
चुपके से पी जाऊं

अपने जीवन की उलझन को कैसे मैं सुलझाऊं
बीच भंवर में नाव है मेरी कैसे पार लगाऊँ

जीवन के पिंजरे में मन का ये पंछी
जीवन के पिंजरे में मन का ये पंछी
कैसे कैद से छूटे
कैसे कैद से छूटे
जीना होगा इस दुनिया में
जब तक सांस न टूटे
जब तक सांस न टूटे
दम घुटता है अब साँसों का
दम घुटता है अब साँसों का
कैसे बोझ उठाऊँ


अपने जीवन की उलझन को कैसे मैं सुलझाऊं
बीच भंवर में नाव है मेरी कैसे पार लगाऊँ
अपने जीवन की उलझन को
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Apne jeewan ki uljhan ko-Uljhan 1975

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Feb 6, 2015

अपने जीवन की उलझन को-उलझन १९७५

घटिया घासलेटी लेखन-इन शब्दों को मैंने पहली बार पढ़ा था
जब ये किसी पहाड़ी क्षेत्र के एक लेखा के लिए प्रयुक्त हुए थे
एक दैनिक के कॉलम में. उसके बाद इस शब्द समूह का मैंने
काफी प्रयोग किया. जैसे उदाहरण के लिए एक घटिया घासलेटी
कवि ह्रदय के हिलोरे पर ध्यान दीजिए-

कभी बर्फ समझ के जमा दिया
कभी आइसक्रीम सा पिघला दिया
कभी लौंड्री में धुला दिया
कभी बिना कलफ प्रेस करा दिया

ये पंक्तियाँ मुझे एक जगह सड़ा सा पिज्ज़ा खाते हुए दिमाग में
आये थे. हो सकता है आज ये पंक्तियाँ घासलेट सी बसाती हों
क्या पता आज से १० साल बाद ये सुपर डुपर हिट किसी गीत
की पंक्तियाँ बन जाएँ. कुछ भी संभव है. आप लोजिक पर न
ही जाएँ तो अच्छा है. जब जनता आटा पिसवा सकती है तो
बर्फ को क्यूँ नहीं जमाया जा सकता? आज तक कितनों ने
बोला-गेंहू पिसवाने जा रहे हैं ?

छोडिये ये सब, ये सब उलझनें हैं. आज आपको उलझन फिल्म
से एक गीत सुनवाते हैं. एम् जी हशमत का लिखा हुआ
सरल शब्दों वाला एक दमदार गीत है ये. किशोर कुमार की
आवाज़ है और कल्याणजी आनंदजी का संगीत है.




गीत के बोल:

अपने जीवन की उलझन को कैसे मैं सुलझाऊं
अपने जीवन की उलझन को कैसे मैं सुलझाऊं
अपनो ने जो दर्द दिये है कैसे मैं बतलाऊँ.

प्यार के वादे हो गए झूठे
प्यार के वादे हो गए झूठे
वफ़ा के बंधन टूटे
वफ़ा के बंधन टूटे

बन के जीवन साथी कोई
चैन मेरा क्यूँ लूटे
चैन मेरा क्यूँ लूटे
ऐसे जीवन साथी से
ऐसे जीवन साथी से
मैं कैसे साथ निभाऊं
अपने जीवन की उलझन को कैसे मैं सुलझाऊं
अपने जीवन की उलझन को

कैसे कैसे भेद छुपाये
कैसे कैसे भेद छुपाये
हाथों की रेखाएं
हाथों की रेखाएं
कोई न जाने इस जीवन को
ये किस ओर ले जाएँ
ये किस ओर ले जाएँ
पढ़ न पाऊँ लेख विधि का
पढ़ न पाऊँ लेख विधि का
पल पल मैं घबराऊँ

अपने जीवन की उलझन को कैसे मैं सुलझाऊं
अपनो ने जो दर्द दिये है कैसे मैं बतलाऊँ.
अपने जीवन की उलझन को
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Apne jeewan ki uljhan ko-Uljhan 1975

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