सीने में जलन आँखों में तूफ़ान-गमन १९८०
फिल्म समस्या पूर्ती का कोई दावा नहीं करती मगर महानगरों की
कशमकश भरी, दो वक्त की रोटी की ज़द्दोज़हद वाली जिंदगी को बेपर्दा
ज़रूर करती है. गांव से शहर आये युवकों का क्या हाल होता है इसके
इर्द गिर्द कथानक घूमता है फिल्म का. गीत है सीने में जलन, आँखों
में तूफ़ान सा क्यूँ है. आज के समय में इसे प्रदूषण के हिसाब से सोचें
तो-आँखों में जलन सीने में तूफ़ान सा क्यूँ है-बेवजह की भाग दौड
सड़कों पे अनगिनत गाड़ियों की और उनसे उठने वाला धुआं, उडती
हुई धूल, ये सब शरीर पर अत्याचार करते हैं.
शहरयार का लिखा गीत जिससंगीत से संवारा है जयदेव ने, फिल्माया
गया है फारूक शेख पर और इसे गाया है सुरेश वाडकर ने. फिल्म में
इसे बैकग्राउंड स्कोर की तरह इस्तेमाल किया गया है. सुरेश वाडकर को
कुछ ऐसे ही गीतों ने पहचान दिलाई थी उस वक्त.
गीत के बोल:
सीने में जलन, आँखों में तूफ़ान सा क्यों है
इस शहर में हर शख्स परेशान सा क्यों है
दिल हैं तो धड़कने का बहाना कोई ढूंढें
पत्थर की तरह बेहिस-ओ-बेजान सा क्यों है
तनहाई की ये कौन सी, मंज़िल है रफीकों
ता-हद-ए-नजर एक बयाबान सा क्यों है
क्या कोई नयी बात नजर आती है हम में
आईना हमे देख के हैरान सा क्यों है
सीने में जलन, आँखों में तूफ़ान सा क्यों है
इस शहर में हर शख्स परेशान सा क्यों है
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Seene mein jalan aankhon mein toofan-Gaman 1980
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