May 30, 2015

ये माना मेरी जाँ-हँसते ज़ख्म १९७३

हिंदी फिल्म संगीत जगत में मदन मोहन का विशिष्ट स्थान
है इसकी बहुत सारी वजहें हैं उनमें से एक लता मंगेशकर
द्वारा उनकी समय समय पर अतिरिक्त तारीफ किया जाना
भी है. उनका संगीत उल्लेखनीय है और रहेगा.

कव्वालियों के लिए रोशन ज्यादा प्रसिद्ध हैं और उनकी बनाई
कव्वालियां आज भी सुनी जाती हैं. कुछ दूसरे संगीत निर्देशकों
की कव्वालियां भी प्रसिद्ध हुई हैं जैसे कि प्रस्तुत कव्वाली जो
फिल्म हँसते ज़ख्म से है. इसे रफ़ी ने गाया है. कैफी आज़मी
ने इसके बोल लिखे हैं.



गीत के बोल:

तौबा तौबा ये जवानी का गुरूर
इश्क के सामने फिर भी सर झुकाना ही पड़ा
कैसे कहते थे न आएँगे
मगर दिल ने इस तरह पुकारा
तुम्हें आना ही पड़ा

ये माना मेरी जाँ मोहब्बत सजा है
मज़ा इसमें इतना मगर किसलिए है
वो इक बेकरारी जो अब तक इधर थी
वो ही बेकरारी उधर किसलिए है
अभी तक तो इधर थी उधर किसलिए है

बहलना न जाने, बदलना न जाने
तमन्ना मचल के संभालना न जाने
करीब और आओ, कदम तो बढ़ाओ
झुका दूं न मैं सर तो, सर किसलिए है
ये माना मेरी जाँ मोहब्बत सजा है
मज़ा इसमें इतना मगर किसलिए है

नज़ारे भी देखे, इशारे भी देखे
कई खूबसूरत सहारे भी देखे
नाम क्या चीज़ है, इज्ज़त क्या है
सोने चांदी की हकीकत क्या है
लाख बहलाए कोई दौलत से
प्यार के सामने दौलत क्या है
जो मैखाने जा के, मैं सागर उठाऊं
तो फिर ये नशीली नज़र किसलिए है
ये माना मेरी जाँ मोहब्बत सजा है
मज़ा इसमें इतना मगर किसलिए है

तुम्हीं ने संवारा, तुम्हीं ने सजाया
मेरे सूने दिल को तुम्हीं ने बसाया
जिस चमन से भी तुम गुजार जाओ
हर कली पर निखार आ जाये
रूठो जाओ तो रूठ जाये खुदा
और जो हँस दो, बहार आ जाये
तुम्हारे कदम से है घर में उजाला
अगर तुम नहीं तो ये घर किसलिए है

ये माना मेरी जाँ मोहब्बत सजा है
मज़ा इसमें इतना मगर किसलिए है
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Ye maana meri jaan-Hanste zakhm 1973

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