तौबा ये मतवाली चाल-पत्थर के सनम १९६७
ये ज़बरदस्त हिट गीत रहा है और इसने मजनुओं को इतना
रिझाया था एक वक्त मानो इसके अलावा कोई बेहतर विकल्प
ही न हो इश्क की पींगे चढाने का. बेचारे फिसड्डी किस्म के
आशिकों को इस गीत के इस्तेमाल के पहले किसी उर्दू के
जानकार से शब्दों का अर्थ पूछना पढता है. आप मजरूह साहब
के गीत को ऐसा वैसा समझने की भूल न कर लें. वे इतनी
गुंजाइश ज़रूर छोड़ते हैं पढ़ाई में पिछडों के लिए कि वे भाषा
सीखें और पढ़े लिखे तरीके से प्रेम करें. वैसे इश्क निहायत ही
बेवकूफ, अंधा, गंवार और उल्लू होता है उसे पढ़ाई लिखाई से
कोई मतलब नहीं होता. इश्क का रसायन शास्त्र अलग किस्म
से चलता है, उसमें न पीरियोडिक टेबल होता है न ही अटॉमिक
वेट वगैरह. उसकी अपनी क्रियाएँ होती हैं, अपने कैटेलिस्ट होते
हैं. ये मैं नहीं, जो बुद्धिजीवी कह गए हैं उसका सार बतला रहा
हूँ इधर.
आपको ऊपर के पैरेग्राफ में कुछ समझ आया ? नहीं न, मुझे
भी नहीं आया. कोई बात नहीं गीत सुन लेते हैं बस. वो क्या
है लाइनें भरना ज़रूरी है थोड़ी पोस्ट को बड़ा करने के लिए और
गूगल भाई एंड कंपनी कंटेंट को तवज्जो देता है, कंटेंट कुछ भी
हो.
इसे मुकेश गा रहे हैं नायक मनोज कुमार के लिए. इस गीत में
फ़िल्मी नायक दो नायिकाओं से इश्क फरमाते नज़र आयेंगे
आपको. इस हिसाब से ये हैवी ड्यूटी गीत हो गया न मुकेश साहब
का. एक साथ दो दो !
गीत के बोल:
तौबा ये मतवाली चाल, झुक जाए फूलों की डाल
चाँद और सूरज आकर माँगें, तुझसे रँग-ए-जमाल
हसीना तेरी मिसाल कहाँ
सितम ये अदाओं की रानाइयाँ हैं
कयामत है क्या तेरी अँगड़ाइयाँ हैं
बहार-ए-चमन हो, घटा हो धनक हो
ये सब तेरी सूरत की परछाईयाँ हैं
के तन से, उड़ता गुलाल कहाँ
तौबा ये मतवाली चाल
हूँ मैं भी दीवानों का इक शाहज़ादा
तुझे देखकर हो गया कुछ ज़्यादा
ख़ुदा के लिए मत बुरा मान जाना
ये लब छू लिये हैं यूँ ही बे-इरादा
नशे में इतना ख़याल कहाँ
तौबा ये मतवाली चाल
यही दिल में है तेरे नज़दीक आ के
मिलूँ तेरे पलकों पे पलके झुका के
जो तुझसा हसीं सामने हो तो कैसे
चला जाऊँ पहलू में दिल को दबा के
कि मेरी इतनी मजाल कहाँ
तौबा ये मतवाली चाल, झुक जाए फूलों की डाल
चाँद और सूरज आकर माँगें, तुझसे रँग-ए-जमाल
हसीना तेरी मिसाल कहाँ
तौबा ये मतवाली चाल
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Tauba ye matwali chaal-Patthar ke sanam 1967
Artists: Manoj Kumar, Waheeda rehman, Mumtaz
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