कोई आया धडकन कहती है-लाजवंती १९५८
एक अलग शैली विकसित हुई ५० के दशक के उत्तरार्ध में. उनकी
आवाज़ में खूबियां तो पहले से थीं मगर उन्हें पहचान कर तराशने
वाले उन्हें मिले बाद में. जनता ओ पी नैय्यर को श्रेय देती है मगर
मेरा अनुमान है कि उन्हें और संगीतकारों ने भी आवाज़ निखारने के
अवसर दिए जिनमें प्रमुख है एस डी बर्मन का नाम. फिल्म लाजवंती
के चारों गीत उन्होंने गाये हैं. गीत एक से बढ़ कर एक हैं.
आशा भोंसले को बर्मन साहब ने सर्वप्रथम अवसर दिया सन १९५३ की
फिल्म अरमान में. इस फिल्म में उनके गाये तीन गीत हैं. सन १९५३
की ही एक और फिल्म शहंशाह में उन्होंने दो गीत गाये बर्मन के लिए.
उसके बाद सन १९५४ की फिल्म राधा कृष्ण में भी उन्हें दो गीत गाने
का अवसर मिला.
आज आपको फिल्म का मजरूह साहब का लिखा हुआ गीत सुनवाते हैं.
गौर तलब है इस फिल्म में नायिका हैं नर्गिस जिनके ऊपर अधिकतर
लता के गीत फिल्माए गए हैं. उनके साथी कलाकार हैं अभिनय का अपना
अलग ही मुकाम बनाने वाले बलराज साहनी.
बलराज साहनी फिल्म उद्योग के ऐसे कलाकार रहे हैं जिनकी तुलना किसी
से नहीं की जाती. मौलिक कलाकारों में उनके बाद की पीढ़ी में संजीव कुमार
का नाम आता है. स्मिता पाटिल भी उसी श्रेणी की अदाकारा थीं. ये सभी
कलाकार अपने समकालीनों पर भारी पढ़े और साथी कलाकारों को दांतों तले
उँगलियाँ दबाने के अनेकानेक अवसर प्रदान करते.
गीत के बोल:
कोई आया धड़कन कहती है
धीरे से पलकों की ये गिरती उठती
चिलमन कहती है
कोई आया धड़कन कहती है
होने लगी किसी आहट की फुलकारियाँ
परवाने बनके उडी दिल की चिन्गारियाँ
झूम गया झिलमिलाता दिया
चाँद हंसा ले के दर्पण मेरे सामने
घबरा के मैं लट उलझी लगी थामने
छेड़ गयी मुझे चंचल हवा
आ ही गया मीठी मीठी सी उलझन लिए
खो ही गई मैं तो शरमाई चितवन लिए
गोरे बदन से पसीना बहा
……………………………………………………..
Koi aaya dhadkan kehti hai-Lajwanti 1958

0 comments:
Post a Comment