न भंवरा न कोई गुल-आरती १९६२
रेल के डब्बे के अंदर वाला गीत. हास्य कलाकार राजेन्द्रनाथ के
साथ पता नहीं कौन अभिनेत्री इस गीत को गा रही हैं परदे पर.
मीना कुमारी और अशोक कुमार को तो मैं पहचान गया गीत
में.
गायक कलाकार हैं-रफ़ी और आशा भोंसले. मजरूह के लिखे इस
गीत की तर्ज़ बनाई है रोशन ने. हल्का फुल्का गीत है ये और
इसे कभी कभार रेडियो वाले बजा दिया करते हैं, वैसे इसे कई
सालों से रेडियो पर नहीं सुना है. कुछ शब्द ऐसे हैं इस गीत
में जिनका गंभीर शायरी में जिक्र होता है: बू-बास और दूसरा
है रंग-ओ-बू.
गीत के बोल:
न भंवरा न कोई गुल अकेला हूँ मैं तेरा बुलबुल
है एक तन्हाई मेरी जान मेरे जहाँ में आ
मेरे जहाँ में रंग-ओ-बू कहीं पर हंसी कहीं आंसू
ये बता सौदाई मैं ये जिंदगी भुला दूं क्या
उल्फत की है यहाँ बू-बास मन में लगी लबों पर प्यास
मन में लगी लबों पर प्यास
चांदी सोना हो न हो दिल है अपने पास
मेरी दुनिया और हसीं है यहाँ दंगा शोर नहीं है
है एक तन्हाई मेरी जान मेरे जहाँ में आ
न भंवरा न कोई गुल अकेला हूँ मैं तेरा बुलबुल
है एक तन्हाई मेरी जान मेरे जहाँ में आ
तेरा जहाँ है जिसका नाम गम की सुबह दुखों की शाम
हो नो नो नो नो
मामूली सी बात पे लड़ना इसका काम
फिर भी ये सब हैं अपने मिलजुल कर देखें सपने
ये बता सौदाई मैं ये जिंदगी भुला दूं क्या
मेरे जहाँ में रंग-ओ-बू कहीं पर हंसी कहीं आंसू
ये बता सौदाई मैं ये जिंदगी भुला दूं क्या
न भंवरा न कोई गुल अकेला हूँ मैं तेरा बुलबुल
है एक तन्हाई मेरी जान मेरे जहाँ में आ
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Na bhanwra na koi gul-Aarti 1962
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