धीरे जलना-पहेली २००५
जड़ें खत्म होने का खतरा उत्पन्न हो जाता है. साहित्यिक
कृतियों पर काम करना आसान नहीं होता क्यूंकि लेखक की
कल्पना को आप हू-ब-हू परदे पर कभी नहीं उतार सकते.
एक हद तक निर्देशक सफल हो जाता है मगर कहीं कहीं उसे
माध्यम की लिमिटेशंस को ध्यान में रखते हुए कथानक या
चित्रण में बदलाव करने पढते हैं.
बरसों पहले(१९७३) मणि कौल ने एक फिल्म बनाई थी चारण
साहित्यकार विजय दान देथा की एक कहानी पर जिसका
नाम था दुविधा. कथानक ग्रामीण राजस्थान पर आधारित है.
फिल्म की विशेषता एक और है- राजस्थानी लोक कलाकारों
द्वारा संगीत दिया जाना. आपको देखने को मिले तो ये फिल्म
ज़रूर देखें एक बार.
उसी कथानक को फिर से लेकर २००५ में अमोल पालेकर ने
पहेली फिल्म का निर्माण किया. शाहरुख खान और रानी मुखर्जी
मुख्य कलाकार हैं और अमिताभ विशेष भूमिका में हैं. फिल्म
का सबसे चर्चित गीत यही है जो आज प्रस्तुत है. गुलज़ार ने
गीत लिखे हैं और एम् एम् क्रीम से इसका संगीत तैयार किया
है. इसे गा रहे हैं सोनू और श्रेया.
गीत के बोल:
धीरे जलना, धीरे जलना, धीरे जलना
ज़िन्दगी की लौ पे जलना
धीरे धीरे धीरे धीरे धीरे जलना
ज़िन्दगी की लौ पे जलना
कांच का सपना, गल ही न जाए
सोच समझ के आंच रखना
धीरे जलना, धीरे जलना, धीरे जलना
धीरे जलना, धीरे जलना, धीरे जलना
धीरे धीरे धीरे धीरे धीरे जलना
होना है जो होना है
वो होने से तो रुकता नहीं
आसमान तो झुकता नहीं
धीरे जलना, धीरे जलना, धीरे जलना
तेरे रूप की हलकी धूप में
दो ही पल हैं, जीने हैं
तेरी आँख में देख चुका हूँ
वो सपने हैं, सीने हैं
आँखों में सपनों की
किरचें हैं, चुभती हैं
धीरे जलना, धीरे जलना, धीरे जलना
सोचा ना था, ज़िन्दगी ऐसे
फिर से मिलेगी जीने के लिए
आँखों को प्यास लगेगी
अपने ही आंसू पीने के लिए
धीरे जलना, धीरे जलना, धीरे जलना
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Dheere jalna-Paheli 2005
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