Mar 22, 2016

बना के क्यूँ बिगाड़ा रे-ज़ंजीर १९७३

एक ज़माना था हास्य कवियों और कवि सम्मेलनों का. शानदार
युग था वो. एक चार लाइनों वाले कवि हैं-सुरेन्द्र शर्मा हरियाणा
के रहने वाले. गंभीर मुद्रा बना के वे अपनी चार लाइनों से जनता
को अनादित किया करते थे. अभी एक प्राइवेट रडियो चैनल पर
उनी पंक्तियाँ सुनीं-आज करे सो काल कर, काल करे सो परसों,
इतनी जल्दी क्या है जब जीना है बरसो. आज के युग पर ये शब्द
साटीक बैठते हैं. बिना हाथ पैर हिलाए आज मनुष्य सब कुछ पा
लेना चाहता है.

आइये सुनें फिल्म जंजीर से एक गीत जो जाया भादुड़ी पर फिल्माया
गया है और इसे लता मंगेशकर ने गाया है. मधुर धुन है और ये
भगवां से शिकायत वाला गीत है. सांप सीढ़ी के खले में जब ९९ के
अंक से सीधे १० पर धडाम से गिरने वाला जो अनुभव होता है
वैसे ही कुछ भाव नायिका व्यक्त कर रही है इस गीत में.



गीत के बोल:

बना के क्यूँ बिगाड़ा रे बिगाड़ा रे नसीबा
ऊपर वाले ऊपर वाले
बना के क्यूँ बिगाड़ा रे

जो तुझको मंज़ूर नहीं था फूल खिलें इस प्यार के
फिर क्यों तूने इन आँखों को रंग दिखाए बहार के
आस बँधा के प्यार जता के बिगाड़ा रे नसीबा
ऊपर वाले ऊपर वाले

बना के क्यूँ बिगाड़ा रे

पाप करे इन्सान अगर तो वो पापी कहलाता है
तूने भी ये पाप किया फिर कैसे कहूँ तू दाता है
राह दिखा के राह पे ला के बिगाड़ा रे नसीबा
ऊपर वाले ऊपर वाले

बना के क्यूँ बिगाड़ा रे बिगाड़ा रे नसीबा
ऊपर वाले ऊपर वाले
..................................................................
Bana ke kyun bigada re-Zanjeer 1973

0 comments:

© Geetsangeet 2009-2020. Powered by Blogger

Back to TOP