सौ बार जनम लेंगे-उस्तादों के उस्ताद १९६३
गीतों के माध्यम से तो फिल्मों के कथानक के माध्यम से. जो
गीत बने हैं जनम जनम के साथ पर उनमें एक उल्लेखनीय गीत
है असद भोपाली का लिखा हुआ फिल्म उस्तादों के उस्ताद से.
सन १९६३ की फिल्म का निर्देशन बृज ने किया था. अशोक कुमार
प्रदीप कुमार, शकीला, शेख मुख्तार, हेलन जॉनी वॉकर के ने इस
फिल्म में काम किया.
गीत प्रदीप कुमार पर फिल्माया गया है. फिल्म में प्रदीप कुमार
ने एक गरीब इंजिनीयर की भूमिका निभाई है जो एक अमीर
युवती से प्रेम करता है. गीत का संगीत थोडा रहस्यमयी होने की
वजह है-परिस्थितिवश अकेला हुआ नायक अकेले में इसे गा रहा
है. जैसा की फिल्मों में होता आया है नायिका उसकी आवाज़ को
पहचान लेती है और जिसे वो मरा हुआ समझ रही थी, वो उसके
सामने जिंदा खड़ा मिलता है मगर ये सब गाने के अंत में. श्रेणी
बनाने का शौक़ीन इसे ‘झरना गीत’ कह सकते हैं. दृश्यावली अति
सुन्दर है इस गीत की. नायिका के विस्मृत, भौंचक और आश्चर्य
मिश्रित भावों के साथ गीत की समाप्ति होती है.
गीत के बोल:
वफ़ा के दीप जलाए हुए निगाहों में
भटक रही हो भला क्यों उदास राहों में
तुम्हें ख्याल है तुम मुझसे दूर हो लेकिन
मैं सामने हूँ, चली आओ मेरी धुन में
सौ बार जनम लेंगे, सौ बार फ़ना होंगे
ऐ जाने वफ़ा फिर भी हम तुम ना जुदा होंगे
किस्मत हमें मिलने से रोकेगी भला कब तक
इन प्यार की राहों में भटकेगी वफ़ा कब तक
कदमों के निशाँ खुद ही मंजिल का पता होंगे
सौ बार जनम लेंगे
ये कैसी उदासी है, जो हुस्न पे छाई है
हम दूर नहीं तुमसे, कहने को जुदाई है
अरमान भरे दो दिल, फिर एक जगह होंगे
सौ बार जनम लेंगे, सौ बार फ़ना होंगे
ऐ जाने वफ़ा फिर भी हम तुम ना जुदा होंगे
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Sau baar janam lenge-Ustadon ke ustad 1963
Artists-Shakila, Pradeep Kumar
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