Jun 23, 2016

महफ़िल में उसने देखा-डाकू १९७५

बस इतनी इल्तिजा है अगर हो सके तो करना
मरने के बाद मेरे आना कब्र के चल के


नाउम्मीदी और मायूसी इतनी भी ना हो के मुंह से इस तरह के
अलफ़ाज़ निकलें. साजन देहलवी की रचना है फिल्म डाकू से.
इनके गीतों और रचनाओं ने चौंकाया है मुझे. मौके भले ही कम
मिले हों इन्हें लिखने के फिल्मों के लिए, छाप छोड़ी है इन्होने
अपने हर एक गीत में. कुछ न कुछ सामान ज़रूर दिया है खास
सा सुनने वाले के लिए. 

आपको गर ठोकर फिल्म के गीत याद हों. इस फिल्म का रफ़ी
का गाया एक गीत मशहूर हुआ था. वो गीत रफ़ी की अंदाज़-ए-बयां
और हीरोईन की अदायगी के लिए जाना जाता है.

डाकू का गीत सुनते सुनते मुग़ल-ए-आज़म और अनारकली के अंतिम
गीतों वाले मंज़र याद आ जाते हैं. फिल्म डाकू के गीतों के लिए
कई गीतकारों की सेवाएं ली गयीं. गीत फिल्माया गया है बिंदु पर
और इसे गा रही हैं उषा मंगेशकर.



गीत के बोल:

महफ़िल में उसने देखा
मुझे जब नज़र बदल के
आँखों में मेरी आये
आँखों में मेरी आये आंसू मचल मचल के
आँखों में मेरी आये आंसू मचल मचल के
महफ़िल में उसने देखा

जा के कहो सितारा उस बेवफा से कहना
जा के कहो सितारा उस बेवफा से कहना
काटी है रात हमने करवट बदल बदल के
काटी है रात हमने चरमट बदल बदल के
काटी है रात हमने

तुम प्यार का सहारा मुझको अगर ना दोगे
तुम प्यार का सहारा सुझको अगर ना दोगे
रह जाऊँगी मैं इक दिन शमा की तरह जल के
रह जाऊँगी मैं इक दिन शमा की तरह जल के
रह जाऊँगी मैं इक दिन

आ जाओ मुझपे नज़रें लोगों की उठ रही हैं
आ जाओ मुझपे नज़रें लोगों की चुठ रही हैं
दुनिया मेरी बदल दो मेरे साथ साथ चल के
दुनिया मेरी बदल दो मेरे साथ साथ चल के
दुनिया मेरी बदल दो

बस इतनी इल्तिजा है गर हो सके तो करना
बस इतनी इल्तिजा है गर हो सके तो करना
मरने के बाद मेरे आना कब्र के चल के
मरने के बाद मेरे आना कब्र के चल के
महफ़िल में उसने देखा
मुझे जब नज़र बदल के
महफ़िल में उसने देखा
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Mehfil mein usne dekha-Daaku 1975

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