Aug 5, 2016

चाँदी के चंद टुकड़ों के लिए-सट्टा बाजार १९५९

फिल्म सट्टा बाजार से एक उपदेशात्मक गीत सुनते हैं
आज. इसे गुलशन बावरा ने लिखा है. गीत लिखा गया
होगा १९५८ या १९५९ में. फिल्म रिलीज़ हुई  है १९५९
एँ. अगर उस साल ऐसी स्तिथि थी तो अब अनुमान
लगा लीजिए आज क्या हाल होगा. अपने मतलब के
लिए कोई भी किसी का गला घोंटने को तैयार खड़ा है.

हर आदमी को मुफ्त में धन चाहिए. दूसरे का धन और
माल कैसे मिल जाए यही फितरत है अधिकाँश जनता की.
चाहे वो आपके करीबी हों, मित्र हों, बाबागिरी की लाइन
के लोग हों या तथाकथित अवतार हों.

पैसे ऐंठने के लिए तरह तरह की स्कीम मिल जायेगी
आपको ज़माने में. कोई पुचकार के ऐंठता है, कोई मूर्ख
बना के तो कोई डरा धमका के ले लेता है.



गीत के बोल:

चाँदी के चंद टुकड़ों के लिए
ईमान को बेचा जाता है
ईमान को बेचा जाता है
मस्जिद मे ख़ुदा और मंदिर मे
भगवान को बेचा जाता है
भगवान को बेचा जाता है

यहाँ ऐसे भी कुछ कलियाँ हैं
जो ना बोले ना मुंह खोले
दौलत के तराज़ू मे इनको
खुद सेंकनेवाले ही तौलें
सय्यादों की इस बस्ती मे
अनजान को बेचा जाता है
अनजान को बेचा जाता है

चाँदी के चंद टुकड़ों के लिए
ईमान को बेचा जाता है
ईमान को बेचा जाता है

हर चीज़ का सौदा होता है
हर चीज़ यहाँ पे बिकती है
धनवान के आगे निर्धन क्या
अब सारी खुदाई झुकती है
बेबस इनसानों के हर इक
अरमान को बेचा जाता है
अरमान को बेचा जाता है

चाँदी के चंद टुकड़ों के लिए
ईमान को बेचा जाता है
ईमान को बेचा जाता है

ऐ मालिक तूने लिख़ी है
पत्थर की कलम से तक़दीरें
मजबूर मुसव्विर देख रहा
ये खून-ऐ-जिगर की तस्वीरें
इनसान के हाथों ही अब तो
इनसान को बेचा जाता है
इनसान को बेचा जाता है

चाँदी के चंद टुकड़ों के लिए
ईमान को बेचा जाता है
ईमान को बेचा जाता है
........................................................
Chandi ke chand tukdon ke liye-Satta Bazar 1959

0 comments:

© Geetsangeet 2009-2020. Powered by Blogger

Back to TOP