सोचता हूँ के तुम्हें मैंने-राज़ १९६७
जाता है. इस गीत के तो बोल भी खूबसूरत हैं. रफ़ी और
कृष्ण कल्ले का गाया ये युगल गीत है फिल्म राज़ से. रफ़ी
की दरियादिली के बदौलत हमें प्रमुख गायिकाओं के अलावा
भी कई ऐसे अनमोल गीत सुनने को मिले जिसमें दूसरी
कम लोकप्रिय गायिकाओं के साथ उन्होंने गाया. ऐसे कई
नायाब रत्न छुपे हुए हैं हिंदी फिल्म संगीत के खजाने में.
सुनने और देखने के लिए पढते रहिये नियमित रूप से यह
ब्लॉग.
गीत लिखा है अख्तर रोमानी ने और इसकी धुन बनाई है
कल्याणजी आनंदजी ने. नायक नायिका को आप पहचान
ही जायेंगे. ना पहचान पायें तो विवरण देख लें.
गीत कि विशेषता है ये एक कविता पाठ की तरह गतिमान
है और इसमें शुएऊ के दो शब्द और आखिरी पंक्ति को छोड़
कर कहीं भी दोहराव नहीं है.
गीत के बोल:
क्या सोच रहे हो तुम
कुछ नहीं
कुछ नहीं ?
सोचता हूँ के तुम्हें मैंने कहीं देखा है
याद करता हूँ मगर याद नहीं आता है
मेरे हमराज़ मुझे तुमने वहीँ देखा है
दिल जहाँ होश में रह कर भी बहक जाता है
जाने क्या बात है हम जब भी मिला करते हैं
दिल में चुपके से कोई चोट ऊभर आती है
दिल से दिल मिलते हैं अफ़साने बिना करते हैं
और तकदीर मोहब्बत की संवर जाती है
अपने चेहरे पे मेरे ख्वाब-ए-परेशां की तरह
आज इन रेशमी जुल्फों को मचल जाने दो
दिल में उठते हुए जज़्बात के तूफानों की तरह
आज हर ख्वाब हकीकत में बदल जाने दो
वो जो एहसास था हल्का सा के तुम गैर नहीं
आज वो एक यकीन बनता सा नज़र आता है
खो दिया जो कभी याद की सूरत में कहीं
आज वो प्यार मुझे मिलता नज़र आता है
आज वो प्यार मुझे मिलता नज़र आता है
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Sochta hoon ke tumhen-Raaz 1967
Artists: Rajesh Khanna, Babita
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