हम छोड़ चले हैं महफ़िल को-जी चाहता है १९६४
जुमले कई गीतों में आपने सुने होंगे. इस नाम से सन १९६४ की
फिल्म भी है. नाम से, हालांकि ये क्लीयर नहीं है कि जी असल
में चाहता क्या है?
हम तो बस सयाने समीक्षकों की भाँति यही कहेंगे कि मजमून को
जानने के लिए फिल्म देखें. इस बहाने हम फिल्म देख लिया करते
हैं जिसे बड़ी मेहनत से निर्देशक और निर्माता ने तैयार कराया होता
है. आखिर को उनके परिश्रम का सम्मान भी ज़रूरी है.
हसरत जयपुरी का लिखा लोकप्रिय गीत है ये जिसे मुकेश ने गाया है
जॉय मुखर्जी के लिए. इसका संगीत तैयार किया कल्याणजी आनंदजी
ने.
गीत के बोल:
हम छोड़ चले हैं महफ़िल को
याद आये कभी तो मत रोना
हम छोड़ चले हैं महफ़िल को
याद आये कभी तो मत रोना
इस दिल को तसल्ली दे लेना
घबराये कभी तो मत रोना
हम छोड़ चले हैं महफ़िल को
एक ख़्वाब सा देखा था हमने
एक ख़्वाब सा देखा था हमने
जब आँख खुली तो टूट गया
जब आँख खुली तो टूट गया
ये प्यार तुम्हें सपना बन कर
तड़पाये कभी तो मत रोना
हम छोड़ चले हैं महफ़िल को
तुम मेरे ख़यालों में खो कर
तुम मेरे ख़यालों में खो कर
बरबाद न करना जीवन को
बरबाद न करना जीवन को
जब कोई सहेली बात तुम्हें
समझाये कभी तो मत रोना
हम छोड़ चले हैं महफ़िल को
जीवन के सफ़र में तन्हाई
जीवन के सफ़र में तन्हाई
मुझको तो न ज़िन्दा छोड़ेगी
मुझको तो न ज़िन्दा छोड़ेगी
मरने की खबर ऐ जान-ए-जिगर
मिल जाये कभी तो मत रोना
हम छोड़ चले हैं महफ़िल को
याद आये कभी तो मत रोना
इस दिल को तसल्ली दे लेना
घबराये कभी तो मत रोना
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Ham chhod chale hain mehfil ko-Ji chahta hai 1964
Artist: Joy Mukherji
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