कभी किसी को मुकम्मल जहाँ-आहिस्ता आहिस्ता १९८१
आहिस्ता आहिस्ता का गीत. गीत आशा और भूपेंद्र दोनों ने गाया
है. आज हम सुनेंगे आशा भोंसले वाला वर्ज़न.
आम जन में एक कहावत प्रचलित है-चने हैं तो दांत नहीं हैं, दांत
हैं तो चने नहीं. सम्पूर्णता मनुष्य को उपलब्ध नहीं है. कोई पैसे
के लिए बेचैन है तो कोई औलाद के लिए तरसता है. किसी के
पास रहने को घर नहीं, किसी के पास पहनने को कपडे नहीं. कुछ
कमी ज़रूर रख छोड़ी है ऊपर वाले ने नहीं तो मनुष्य अपने आप
को भगवान समझने लग जाए. इसलिए कहीं दही है तो रायता
नहीं, कहीं पूड़ी है तो अचार नहीं. जिंदगी फिर भी चलती रहती
है.
गीत की पहली दो पंक्तियाँ शहरयार की हैं जिन्हें लेकर निदा फाजली
नीक उम्दा गीत रचा है. संगीतकार हैं खय्याम. पिछला गीत लता
का गाया हुआ था जो हमने आपको एक श्वेत श्याम फिल्म से
सुनवाया था. नंदा के ऊपर फिल्माए आशा भोंसले के गीत रेयर हैं.
वीडियो में एक ही अन्तरा उपलब्ध है लेकिन हम आपको गीत के
पूरे बोल उपलब्ध कावा रहे हैं.
गीत के बोल:
कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कहीं ज़मीन तो कहीं आसमान नहीं मिलता
कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
जिसे भी देखिये वो अपने आप में गुम है
जिसे भी देखिये वो अपने आप में गुम है
ज़ुबाँ मिली है मगर हमज़ुबाँ नहीं मिलता
ज़ुबाँ मिली है मगर हमज़ुबाँ नहीं मिलता
कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
बुझा सका है भला कौन वक़्त के शोले
बुझा सका है भला कौन वक़्त के शोले
ये ऐसी आग है जिसमे धुआँ नहीं मिलता
ये ऐसी आग है जिसमे धुआँ नहीं मिलता
कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
तेरे जहाँ में ऐसा नहीं के प्यार न हो
तेरे जहाँ में ऐसा नहीं के प्यार न हो
जहाँ उम्मीद हो इसकी वहाँ नहीं मिलता
जहाँ उम्मीद हो इसकी वहाँ नहीं मिलता
कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कहीं ज़मीन तो कहीं आसमान नहीं मिलता
कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
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Kabhi kisi ko mukammal jahan-Aahista aahista 1981
Artist: Nanda
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