Jan 22, 2017

चुपके से मिले-मंज़िल १९६०

रोमांटिक गीत कैसा हो-प्रीसेट फॉर्मेट में या फिर उसकी
तैयारी की जाए कुछ नए अंदाज़ में. हिंदी फिल्म संगीत
क्षेत्र में कई रेवोल्यूशनरी हुए हैं उनमें से एक हैं बर्मन
दादा. किसी गीत की सिचुएशन और मूड समझ कर गीत
तैयार करने में महारत हासिल थी बर्मन दादा को.

इस गीत को शुरू शुरू में सुनने में ये किसी ड्रामे की
रिहर्सल सरीखा लगता था. धीरे धीरे, वो क्या कहते हैं
सयाने अंग्रेजी में, सोंग स्टार्ट्स टू ग्रो ऑन यू, अर्थात
(गाना आपके ऊपर उगना शुरू कर देता है) वैसा ही कुछ
कुछ हुआ और ये पसंद आने लगा.

गीत की एक विशेषता पर अपने गौर किया होगा इसे
गाने वाले भी इसे टेंशन फ्री हो के गा रहे हैं मानो उनको
दिमागी रूप से रेलक्स किया गया हो गीत के पहले.
रफ़ी ने गायकी की कई बारीकियां बर्मन दादा से सीखी
थीं. गीता दत्त तो कुदरती गायिका थीं, उनके गीतों में
भाव अपने आप उतर आते थे.

इस गीत का सम्पूर्ण आनंद आप केवल बड़े परदे पर ही
ले सकते हैं. रौशनी कुछ कम प्रयोग में लाई गई है और
वैसे भी अब कम रौशनी वाले बल्बों का ज़माना आ गया
है.




गीत के बोल:

चुपके से मिले प्यासे प्यासे कुछ हम कुछ तुम
क्या हो जो घटा बरसे खुल के रुम-झुम रुम-झुम
चुपके से मिले प्यासे प्यासे कुछ हम कुछ
क्या हो जो घटा बरसे खुल के रुम-झुम रुम-झुम
रुम-झुम रुम-झुम
चुपके से मिले प्यासे प्यासे कुछ हम कुछ तुम
कुछ हम कुछ तुम

झुकती हुई आँखों में हैं बेचैन से अरमाँ कई
रुकती हुई साँसों में हैं खामोश से तूफ़ाँ कई
मद्धम मद्धम

चुपके से मिले प्यासे प्यासे कुछ हम कुछ तुम
कुछ हम कुछ तुम

ठण्डी हवा का शोर है या प्यार का संगीत है
चितवन तेरी इक साज़ है धड़कन मेरी इक गीत है
ठण्डी हवा का शोर है या प्यार का संगीत है
चितवन तेरी इक साज़ है धड़कन मेरी इक गीत है
मद्धम मद्धम मद्धम

चुपके से मिले प्यासे प्यासे कुछ हम कुछ तुम
कुछ हम कुछ तुम
क्या हो जो घटा बरसे खुल के रुम-झुम रुम-झुम
कुछ हम कुछ तुम
कुछ हम कुछ तुम
………………………………………………….
Chupke se mile-Manzil 1960

Artists: Dev Anand, Nutan

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