शाम ढले खिड़की तले तुम सीटी-अलबेला १९५१
सुनते हैं. गीत में जो निवेदन नायिका कर रही है वो बेहद
विनम्र है. यही बात लड़की का बाप या भाई करता तो कुछ
और तरह से करता धमकी वाले अंदाज़ में.
गीत नोक झोंक वाला है जिसमें दोनों एक दूसरे को नसीहत
दे रहे हैं. गीत में ये भी बतलाया गया है कितने महीने से
मेहनत हो रही है. राजेंद्र कृष्ण के लिखे गीत को चितलकर
और लाता गा रहे हैं.
फिल्म में ये गीत एक स्टेज नाटक में गाया जा रहा है.
गीत के बोल:
शाम ढले खिड़की तले
तुम सीटी बजाना छोड़ दो
तुम सीटी बजाना छोड़ दो
घड़ी-घड़ी खिड़की में खड़ी
तुम तीर चलाना छोड़ दो
तुम तीर चलाना छोड़ दो
शाम ढले खिड़की तले
तुम सीटी बजाना छोड़ दो
तुम तीर चलाना छोड़ दो
रोज़-रोज़ तुम मेरी गली में
चक्कर क्यों हो काटते
अजी चक्कर क्यों हो काटते
सच्ची-सच्ची बात कहूँ मैं
सच्ची-सच्ची बात कहूँ मैं
अजी तुम्हारे वास्ते तुम्हारे वास्ते
जाओ जाओ होश में आओ
यूँ आना-जाना छोड़ दो
यूँ आना-जाना छोड़ दो
शाम ढले खिड़की तले
तुम सीटी बजाना छोड़ दो
तुम तीर चलाना छोड़ दो
मुझसे तुम्हें क्या मतलब है
ये बात ज़रा बतलाओ
मुझसे तुम्हें क्या मतलब है
ये बात ज़रा बतलाओ
बात फ़कत इतनी सी है
कि तुम मेरी हो जाओ
आओ आओ तुम मेरी हो जाओ
ऐसी बातें अपने दिल में
साहिब तुम लाना छोड़ दो
साहिब तुम लाना छोड़ दो
शाम ढले खिड़की तले
तुम सीटी बजाना छोड़ दो
तुम तीर चलाना छोड़ दो
चार महीने मेहनत की है
अजी रँग कभी तो लाएगी
जाओ-जाओ जी यहाँ तुम्हारी
दाल कभी गलने न पायेगी
अजी दाल कभी गलने न पायेगी
दिल वालों मतवालों पर तुम
रौब जमाना छोड़ दो
तुम रौब जमाना छोड़ दो
शाम ढले खिड़की तले
तुम सीटी बजाना छोड़ दो
तुम तीर चलाना छोड़ दो
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Shaam dhale khidki tale-Albela 1951
Artists: Bhagwan, Geeta Bali