तुम्हारी ज़ुल्फ़ के साए में-नौनिहाल १९६७
रोमांटिक गीत सुनते हैं. संजीव कुमार पर फिल्माए गए अधिकाँश
गीत चाहे वो रोमांटिक हों या अन-रोमांटिक सब सोबर ही लगते हैं.
सोबर शब्द ज्यादा सुनते पढते मुझे गैरी सोबर्स याद आने लगते
हैं.
सोबर्स अपने फील्ड के आलराउंडर थे तो मदन मोहन अपने फील्ड के.
मदन मोहन ने गज़लों के अलावा दुसरे किस्म के गीत भी सुन्दर
बनाये हैं. इसका जिक्र हम काफी जगह कर चुके हैं उदाहरणों के
साथ.
गीत में एक पहाड़ है, पहाड़ पर फूल पत्ती घास फूस लगे हैं. पूर्णतः
रोमांटिक जगह है. फिल्मांकन किसी बढ़िया जगह हुआ है इस गीत
का. सन १९६७ तक काफी फ़िल्में रंगीन भी आ चुकी थीं. सत्तर के
दशक के बाद श्वेत श्याम नहीं के बराबर रह गया.
गीत के बोल:
तुम्हारी ज़ुल्फ़ के साए में शाम कर लूँगा
तुम्हारी ज़ुल्फ़ के साए में शाम कर लूँगा
सफ़र इक उम्र का पल में तमाम कर लूँगा
नज़र मिलाई तो पूछूँगा इश्क का अंजाम
नज़र मिलाई तो पूछूँगा इश्क का अंजाम
नज़र झुकाई तो खाली सलाम कर लूँगा
नज़र झुकाई तो खाली सलाम कर लूँगा
तुम्हारी ज़ुल्फ़ के साए में शाम कर लूँगा
जहान-ए-दिल पे हुकूमत तुम्हे मुबारक हो
जहान-ए-दिल पे हुकूमत तुम्हे मुबारक हो
रही शिकस्त तो वो अपने नाम कर लूँगा
रही शिकस्त तो वो अपने नाम कर लूँगा
तुम्हारी ज़ुल्फ़ के साए में शाम कर लूँगा
तुम्हारी ज़ुल्फ़ के साए में शाम कर लूँगा
सफ़र इक उम्र का पल में तमाम कर लूँगा
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Tumhari zulf ke saaye mein shaam-Naunihal 1967
Artist: Sanjeev Kumar, Indrani Mukherji
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