आई अब के साल दिवाली-हकीकत १९६४
इस गीत को अमूमन दिवाली के अवसर पर ज्यादा सुना जाता
है मगर हम इसे आज सुन लेते हैं.
दिवाला शब्द का अविष्कार ज़रूर दिवाली शब्द के बाद ही हुआ
होगा. दिवाली जहाँ खुशियों की बरसात की सूचक है वहीँ दिवाला
शब्द बर्बादी और कंगाली का सूचक है. ये शब्द एक दूसरे के
विलोम हैं.
दर्द भरा गीत है ये जिसे कैफी आज़मी ने लिखा है. मदन मोहन
की धुन पर लता मंगेशकर ने इसे गाया है.
गीत के बोल:
आई अब के साल दिवाली
मुंह पर अपने खून मले
चारों तरफ है घोर अंधेरा
घर में कैसे दीप जले
आई अब के साल दिवाली
बालक तरसे फुलझड़ियों को दीपों को दीवारें
माँ की गोदी सूनी सूनी आँगन कैसे संवारे
राह में उनकी जाओ उजालों
बन में जिनकी शाम ढले
आई अब के साल दिवाली
जिनके दम से जगमग जगमग करती थी ये रातें
चोरी चोरी हो जाती थी मन से मन की बातें
छोड़ चले वो घर में अमावस
ज्योति लेकर साथ चले
आई अब के साल दिवाली
टप टप टप टप टपके आंसू छलकी खाली थाली
जाने क्या क्या समझाती है आँखों की ये लाली
शोर मचा है आग लगी है
कटते हैं पर्वत पे गले
आई अब के साल दिवाली
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Aayi ab ke saal diwali-Haqeeqat 1964
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