इक लफ़्ज़-ए-मुहब्बत का-बेरहम १९८०
आवाज़ में. फिल्म का नाम है बेरहम.ये सन १९८० की
फिल्म है. फिल्म ज्यादा नहीं चली और ये गीत भी कुछ
ज्यादा नहीं बजा मगर इस रचना को कई कलाकार गा
चुके हैं अपने अपने अंदाज़ में.
इस गीत की तर्ज़ बनाई है लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने.
गीत के बोल:
इक लफ़्ज़-ए-मुहब्बत का अदना सा फ़साना है
इक लफ़्ज़-ए-मुहब्बत का अदना सा फ़साना है
सिमटे तो दिल-ए-आशिक़
सिमटे तो दिल-ए-आशिक़ फ़ैले तो ज़माना है
इक लफ़्ज़-ए-मुहब्बत का अदना सा फ़साना है
इक लफ़्ज़-ए-मुहब्बत का
हम इश्क़ के मारों का इतना ही फ़साना है
रोने को नहीं कोई हँसने को ज़माना है
ये इश्क़ नहीं आसाँ बस इतना ही समझ लीजे
ये इश्क़ नहीं आसाँ बस इतना ही समझ लीजे
ये इश्क़ नहीं आसाँ
एक आग का दरिया है
एक आग का दरिया है और डूब के जाना है
इक लफ़्ज़-ए-मुहब्बत का अदना सा फ़साना है
इक लफ़्ज़-ए-मुहब्बत का
क्या हुस्न ने समझा है क्या इश्क़ ने जाना है
क्या हुस्न ने समझा है क्या इश्क़ ने जाना है
क्या हुस्न ने समझा है
हम ख़ाकनशीनों की
हम ख़ाकनशीनों की ठोकर में ज़माना है
इक लफ़्ज़-ए-मुहब्बत का अदना सा फ़साना है
इक लफ़्ज़-ए-मुहब्बत का
आँसू तो बहुत से हैँ आँखों में जिगर लेकिन
बिन जायें तो मोती है बिन जायें तो मोती है
बिन जायें तो मोती है रह जायें तो दाना है
इक लफ़्ज़-ए-मुहब्बत का अदना सा फ़साना है
इक लफ़्ज़-ए-मुहब्बत का अदना सा फ़साना है
इक लफ़्ज़-ए-मुहब्बत का
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Is lafz-e-mohabbat ka-Beraham 1980
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