आ जा पंछी अकेला है-नौ दो ग्यारह १९५७
की ओर लौट आये. नौ दो ग्यारह से अगला गीत सुनते हैं जिसे
जनता पंछी गीत कहती है. कोई इसको अकेला गीत नहीं कहता है.
कितना पॉजिटिव ऐटिट्यूड है ना जी. वैसे तो इस अकेले पंछी को
कुछ हिदायतें दी जा रही हैं इस गीत में.
रियलिस्टिक(real) और रीलिस्टिक(reel) कभी कभी एक ही बिंदु को
छूने का प्रयास करते प्रतीत होते हैं जैसे कि अफसाना और हकीकत
कभी कभी एक ही समान लगने लगते हैं. जी हाँ हम इस गीत के
बारे में भी ऐसा कुछ समझ रहे हैं.
मजरूह सुल्तानपुरी का लिखा गीत है, एस डी बर्मन का संगीत और
रफ़ी-आशा की आवाजें, देव आनंद और कल्पना कार्तिक कलाकार.
गीत के बोल:
ओ ओ ओ आ जा पंछी अकेला है
ओ ओ ओ सो जा निंदिया की बेला है
ओ ओ ओ आ जा पंछी अकेला है
ओ सो जा निंदिया की बेला है
ओ ओ ओ आ जा पंछी अकेला है
ओ ओ ओ सो जा निंदिया की बेला है
ओ ओ ओ आ जा पंछी अकेला है
उड़ गई नींद यहां मेरे नैन से
बस करो यूं ही पड़े रहो चैन से
उड़ गई नींद यहां मेरे नैन से
बस करो यूं ही पड़े रहो चैन से
लागे रे डर मोहे लागे रे
ओ ओ ओ ये क्या डरने की बेला है
ओ ओ ओ आ जा पंछी अकेला है
ओ ओ ओ सो जा निंदिया की बेला है
ओ ओ ओ आ जा पंछी अकेला है
ओ हो हो हो कितनी घुटी सी है ये फ़िज़ा
हा हा हा कितनी सुहानी है ये हवा
ओ हो हो हो कितनी घुटी सी है ये फ़िज़ा
हा हा हा कितनी सुहानी है ये हवा
मर गये हम निकला दम मर गये हम
हो ओ ओ मौसम कितना अलबेला है
हो ओ ओ सो जा निंदिया की बेला है
ओ ओ ओ आ जा पंछी अकेला है
बिन तेरे कैसी अंधेरी ये रात है
दिल मेरा धड़कन मेरी तेरे साथ है
बिन तेरे कैसी अंधेरी ये रात है
दिल मेरा धड़कन मेरी तेरे साथ है
तन्हा है फिर भी दिल तन्हा है
हो ओ ओ लागा सपनों का मेला है
ओ ओ ओ आ जा पंछी अकेला है
हो ओ ओ सो जा निंदिया की बेला है
ओ ओ ओ आ जा पंछी अकेला है
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Aa ja panchhi akela hai-Nau do gyarah 1957
Artists: Dev Anand, Kalpana Kartik
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